मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने अपने आदेश में कहा कि आम आदमी सरकारी दफ़्तरों में और सरकारी कर्मचारियों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली से पूरी तरह से हताश है.
भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 के तहत सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां सेक्शुअल फेवर, महंगे क्लब की सदस्यता और आतिथ्य मांगने और स्वीकार करने या क़रीबी मित्रों या रिश्तेदारों को रोज़गार प्रदान करने पर केस दर्ज कर सकती हैं.
भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक-2018 के तहत रिश्वत देने वाले को सात साल की सज़ा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है.
पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस खेहर ने कहा कि आज़ादी के समय भारत ने धर्मनिरपेक्ष रहना पसंद किया था, लेकिन हम उसे भूल गए.