नरेंद्र मोदी ने कम से कम एक ऐसा आर्थिक समाज तो बना दिया है जो नतीजे से नहीं नीयत से मूल्यांकन करता है. मूर्खता की ऐसी आर्थिक जीत कब देखी गई है? गीता गोपीनाथ जैसी अर्थशास्त्री को नीयत का डेटा लेकर अपना नया शोध करना चाहिए.
इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय के प्रमुख समाचार.
भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक-2018 के तहत रिश्वत देने वाले को सात साल की सज़ा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है.
2012 में अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के फौरन बाद जजों को किसी नए सरकारी पद पर नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक हो सकता है, लेकिन उनकी इस सलाह को उनकी ही सरकार में कोई तवज्जो नहीं दी गई है.
उपचुनाव परिणाम बता रहे हैं कि अब जुमलों से काम नहीं चलने वाला.
अगर आप केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्विटर टाइमलाइन देखेंगे, तो आपको पता नहीं लगेगा कि देश में क्या चल रहा है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने रिपोर्ट में आशंका जताई है कि दिल्ली में एफसीआई गोदामों से राशन का वितरण हुआ ही नहीं और अनाज चोरी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है.
वर्तमान समाज को सहानुभूति की नहीं, समानुभूति की ज़रूरत है. आज नीति बनाने वालों में ही 'समानुभूति' का तत्व खत्म हो चुका है. नीति बनाते समय उन्हें आंकड़े चाहिए होते हैं, एहसास नहीं.
हम भी भारत की 23वीं कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी कार्ति चिदंबरम की गिरफ़्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी और एनजीओ कॉमन कॉज के विपुल मुद्गल के साथ चर्चा कर रही हैं.
चाहे हीरा-व्यापार का मामला हो या बुनियादी ढांचे की कुछ बड़ी परियोजनाएं, काम करने का तरीका एक ही रहता है- परियोजना की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और बैंकों व करदाताओं का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा ऐंठना.
आरोप है कि आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंज़ूरी के लिए पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति को 10 लाख की रिश्वत मिली थी.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने से समस्या ख़त्म हो जाएगी, ऐसा सोचना अज्ञानता के अलावा कुछ नहीं है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.
ग़ैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 180 देशों की रिपोर्ट में भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे ख़राब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है.
आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.