सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि बढ़ते मामलों की वजह केवल न्यायाधीशों की कमी नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए बुनियादी सुविधाओं की भी ज़रूरत है. ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए बिना यह आशा करना कि जज और वकील कोर्ट की जर्जर इमारत में बैठक कर न्याय देंगे, उचित नहीं है.
भाजपा धर्म व आस्था के नाम पर बनी समाज की जिन दरारों को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में कामयाब हुई है, उसके ख़िलाफ़ मजबूत चुनौती पेश करना, एक लंबे संघर्ष की मांग करता है. क्या विपक्ष के सभी बड़े-छोटे दल उस ख़तरे के बारे में पूरी तरह सचेत हैं? क्या वे समझते हैं कि यह महज़ चुनावी मामला नहीं है?
संविधान दिवस समारोह के समापन कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अदालतों में मामले लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी है. विधायिका अपने द्वारा पारित क़ानूनों के प्रभाव का अध्ययन नहीं करती और इससे कभी-कभी बड़े मुद्दे उपजते हैं. ऐसे में पहले से मुक़दमों का बोझ झेल रहे मजिस्ट्रेट हज़ारों केस के बोझ से दब गए हैं.
टीजे ज्ञानवेल की जय भीम उम्मीद और नाउम्मीदी की फ़िल्म है. उम्मीद इसलिए कि यह दिखाती है कि इंसाफ़ के लिए लड़ा जा सकता है, जीता भी जा सकता है. नाउम्मीदी इसकी कि शायद हमारे इस वक़्त में यह सब कुछ एक सपना बनकर रह गया है.
डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्सेस नाउ और सौ के क़रीब नागरिक समाज संगठनों व स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि वे एनएसओ ग्रुप के स्पायवेयर द्वारा विश्वभर में बड़े पैमाने पर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी खुलासों से चिंतित हैं और सरकारों को इसे नियंत्रित करने के लिए क़दम उठाने चाहिए.
ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद पर सीधे नियमित कमिश्नर की तैनाती न करके किसी वरिष्ठ अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. ऐसा लगता है कि सत्ताधारी नेता जानबूझकर ही शायद ऐसा कर रहे हैं, जिससे उनके हिसाब से न चलने पर उन्हें आसानी से हटाया जा सके.
इंसान की आज़ादी सबसे ऊपर है. जो ज़मानत एक टीवी कार्यक्रम करने वाले का अधिकार है, वह अधिकार गौतम नवलखा या फादर स्टेन का क्यों नहीं, यह समझ के बाहर है. अदालत कहेगी हम क्या करें, आरोप यूएपीए क़ानून के तहत हैं. ज़मानत कैसे दें! लेकिन ख़ुद पर यह बंदिश भी खुद सर्वोच्च अदालत ने ही लगाई है.
इंसानियत का ज़िक्र कहीं तहखाने में फ़ेंक दी गई संवेदना को जगाने की ताक़त रखता है, इसीलिए सत्ता इस शब्द को बर्दाश्त नहीं कर सकती. बावजूद ऐतिहासिक दुरुपयोग के मानवता शब्द में एक विस्फोटक क्षमता है. इसे अगर ईमानदारी से इस्तेमाल करें, तो यह भीतर तक जमी बेहिसी की चट्टानी परतों को छिन्न-भिन्न कर सकता है.
टीकाकरण अगर सफल होना है तो उसे मुफ़्त होना ही होगा, यह हर टीकाकरण अभियान का अनुभव है, तो भारत में ही क्यों लोगों को टीके के लिए पैसा देना पड़ेगा? महामारी की रोकथाम के लिए टीका जीवन रक्षक है, फिर भारत सरकार के लिए एक करदाता के जीवन का महत्त्व इतना कम क्यों है कि वह इसके लिए ख़र्च नहीं करना चाहती?
मनमोहन सिंह ने कॉमरेड एबी बर्धन स्मृति व्याख्यान को संबोधित करते हुए कहा कि सैन्य बलों को धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरूरत है.