सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने 13 शीर्ष ब्रांड के साथ-साथ कई छोटे ब्रांड के प्रसंस्कृत और कच्चे शहद में शुद्धता की जांच की थी. इसके अध्ययन में कहा गया था कि डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडू, हितकारी और एपिस हिमालय जैसे प्रमुख ब्रांड के शहद के नमूने परीक्षण में विफल रहे.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अध्ययन में कहा गया है कि डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडू, हितकारी और एपिस हिमालय जैसे प्रमुख ब्रांड के शहद के नमूने परीक्षण में विफल रहे. वहीं इन कंपनियों की ओर से कहा गया है कि यह प्रसंस्कृत/कृत्रिम शहद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक शहद निर्माताओं को बदनाम करने की साज़िश है.
ओज़ोन एक घातक गैस है. यहां तक कि थोड़े समय के लिए भी इसके संपर्क में आने पर श्वांस की स्थिति और अस्थमा पीड़ितों की स्थिति काफी ख़राब हो सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 14.4 करोड़ घरेलू शौचालयों के 72 करोड़ लोगों के इस्तेमाल से प्रतिदिन औसतन एक लाख टन अपशिष्ट निकलता है. इसके उचित निस्तारण के इंतजाम नहीं होने पर अपशिष्ट से जमीन और भूजल के दूषित होने का खतरा है.
सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि देश के 20 ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्टों ने 18,467 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा किया लेकिन किसी ने भी एक भी लाभार्थी की पहचान नहीं की है.
गैर-सरकारी संस्था सीएसई ने भारतीय बाज़ारों में उपलब्ध कुछ खाद्य पदार्थों का परीक्षण किया, जिसमें पाया गया कि 32% खाद्य पदार्थ जेनेटिकली मॉडिफाइड यानी जीएम पॉजिटिव हैं, जिन्हें सरकारी मंज़ूरी के बिना नहीं बेचा जा सकता.