डिजिटल निजी डेटा सुरक्षा (डीपीडीपी) विधेयक का वह संस्करण जिसे कैबिनेट की मंज़ूरी मिली है, सार्वजनिक डोमेन में नहीं है. फिर भी यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि क़ानून में वो ख़ामियां न हों, जो पिछले मसौदे में थीं.
आधिकारिक दस्तावेज़ के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेश के प्रत्येक परिवार को सरकारी सेवाओं के वितरण में सुधार के लिए 'जम्मू कश्मीर परिवार पहचान पत्र' नामक एक यूनिक अल्फान्यूमेरिक कोड प्रदान किया जाएगा. यह हरियाणा के 'परिवार पहचान अधिनियम 2021' की तर्ज पर लागू होगा.
केंद्र सरकार ने डिजिटल निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 का मसौदा जारी किया है. यह मसौदा इस साल अगस्त में सरकार द्वारा वापस लिए गए डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के स्थान पर जारी किया गया है.
साक्षात्कार: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा का कहना है कि अगर पुलिस बिना सहमति के डेटा इकट्ठा करती है, तो इसे अनिवार्य तौर पर इसकी ज़रूरत का वाजिब कारण बताने में समर्थ होना चाहिए. सिर्फ यह कह देना काफी नहीं है कि ऐसा करने का मक़सद आपराधिक जांच करना है.
भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी. रवि शंकर ने कहा कि आज के समय में डेटा का मतलब पैसा है. डेटा का मौद्रीकरण किया जा सकता है इसलिए निजी डेटा की सुरक्षा के लिए क़ानून ज़रूरी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उपभोक्ताओं से संबंधित जानकारियों का मौद्रीकरण एक हद तक उनकी सहमति से ही किया जाना चाहिए.
विशेष रिपोर्ट: कोरोना संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है और एक्टिव केस के मामले में तीसरे पर. ऐसे समय में आरोग्य सेतु ऐप की उपयोगिता और किसी भी तरह से संक्रमण रोकने में इसके कारगर होने को लेकर सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है.
सरकार द्वारा एक याचिकाकर्ता को आरोग्य सेतु ऐप के बारे में कोई जानकारी न होने की बात कहने के बाद केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा कि जब ऐप को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा डिजाइन और विकसित बताया गया है, तब कैसे संभव है कि उनके पास कोई जानकारी ही नहीं है.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी क़ानून की अनुपस्थिति में न तो राज्य सरकारें, न केंद्र और न ही उनकी एजेंसियां इस आधार पर नागरिकों को लाभ या सुविधाएं देने से इनकार कर सकते हैं कि उनके फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड नहीं है.
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए मोदी सरकार द्वारा अप्रैल में लाया गया आरोग्य सेतु ऐप शुरुआत से ही नागरिकों की निजी जानकारी की सुरक्षा और इसकी उपयोगिता को लेकर विवादों में घिरा हुआ है.
जिस तरह कोरोना वायरस इंसान की देह में घुसकर वहां पहले से मौजूद बीमारियों के असर को बढ़ा देता है, ठीक उसी तरह इसने अलग-अलग देशों और समाजों में पहुंचकर उनकी दुर्बलताओं को उजागर किया है.
निजी डेटा सुरक्षा विधेयक का पहला मसौदा लेकर आने वाली समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा ने कहा कि आरोग्य सेतु के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए जारी दिशानिर्देशों को पर्याप्त कानूनी समर्थन नहीं माना जा सकता है.
12 मई से शुरू हो रही विशेष राजधानी ट्रेनों के यात्रियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य कर दिया गया है. केंद्र सरकार का कहना है कि नए नियमों के बाद ऐप का डेटा इकट्ठा होने के ठीक 180 दिन बाद डिलीट हो जाएगा.
सरकार का दावा कि इस ऐप के जरिये कुछ विशेष दूरी तक के ही संक्रमण की जानकारी मिल सकती है. हालांकि एक फांसीसी हैकर ने पीएमओ और रक्षा मंत्रालय जैसे हाईप्रोफाइल जगहों का डेटा सार्वजनिक करते हुए सिद्ध किया है कि इस ऐप के जरिये देश के कोने-कोने की जानकारी मिल सकती है.
नोएडा पुलिस ने सार्वजनिक स्थानों पर जाने वाले लोगों के लिए मास्क पहनना और स्मार्टफोन में आरोग्य सेतु ऐप इंस्टॉल करना अनिवार्य किया है. इसके अलावा पुलिस ने सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर भी पाबंदी लगाई है.
राहुल गांधी के बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आरोग्य सेतु ऐप शक्तिशाली सहयोगी है जो लोगों की सुरक्षा करता है. इसमें डाटा सुरक्षा की ठोस व्यवस्था है.