अदालत दिल्ली दंगे के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी. इस मामले में पहले ही पांच लोगों को ज़मानत मिल चुकी है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है कि एक आरोपी को मुक़दमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने दिया जाए.
बीते साल 13 सितंबर को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे के सिलसिले में यूएपीए के तहत छात्र नेता उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार किया था. यूएपीए के साथ ही इस मामले में उनके ख़िलाफ़ दंगा करने और आपराधिक साज़िश रचने के भी आरोप लगाए गए हैं.
वीडियो: पूर्व जेएनयू छात्र और सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ मुखर कार्यकर्ता के तौर पहचाने जाने वाले उमर ख़ालिद को 13 सितंबर 2020 को दिल्ली पुलिस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे के सिलसिले में गिरफ़्तार किया था. उमर को एक साल से क़ैद में रखने के ख़िलाफ़ कई जानी-मानी हस्तियां सोमवार को एक साथ आईं और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में उनको रिहा करने की मांग की.
छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने दिल्ली दंगे के आरोपों को लेकर दिल्ली पुलिस द्वारा ज़ब्त की गए उनसे संबंधित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मुहैया कराने की मांग की थी.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा से जुड़े एक मामले में चार लोगों द्वारा दायर शिकायतों के आधार पर आरोपी जावेद को अप्रैल 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. शिकायतकर्ताओं ने दावा किया था कि 25 फरवरी, 2020 को दंगाई भीड़ ने उनके घर, गोदाम और दुकानों में तोड़फोड़ व लूटपाट की थी. अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ताओं के बयान से यह स्पष्ट नहीं होता कि संबंधित अपराध हुआ था.
दिल्ली दंगा मामले में आरोपी जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि संबंधित अदालत द्वारा संज्ञान लेने से पहले ही जांच एजेंसी द्वारा दर्ज उनके बयान को कथित रूप से मीडिया में लीक करके पुलिस अधिकारियों ने कदाचार किया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे पांच आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है, जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है.
शरजील इमाम के ख़िलाफ़ जामिया मिलिया इस्लामिया में 13 दिसंबर 2019 और इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 16 जनवरी 2020 को नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है. उन पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर धमकी दी थी कि असम और शेष पूर्वोत्तर राज्यों को ‘भारत से अलग’ कर दिया जाए.
पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान लूटपाट और परिसर में आग लगाने के आरोप में दर्ज पांच में चार एफ़आईआर रद्द करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही घटना के लिए पांच अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज नहीं की जा सकती है, क्योंकि यह शीर्ष अदालत द्वारा प्रतिपादित क़ानून के विपरीत है.
फरवरी 2020 में दिल्ली के चांदबाग इलाके में दंगों के दौरान एक दुकान में कथित लूटपाट और तोड़फोड़ से संबंधित मामले में आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम और दो अन्य को आरोपमुक्त कर दिया. अदालत ने कहा कि इस मामले में ऐसा लगता है कि चश्मदीद गवाहों, वास्तविक आरोपियों और तकनीकी सबूतों का पता लगाने का प्रयास किए बिना ही केवल आरोप-पत्र दाख़िल करने से ही मामला सुलझा लिया गया.
लगभग साल भर से दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में जेल में बंद उमर ख़ालिद की मां कहती हैं कि उसे बाहर आने पर हिंदुस्तान छोड़ देना चाहिए, लेकिन कुछ पलों बाद वो बदल-सी जाती हैं.
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि पुलिस केंद्र सरकार के इशारे पर इस प्रकार के असंवैधानिक और अवैध कार्य कर रही है, क्योंकि जिन किसानों को नोटिस जारी किए गए हैं, उनके नाम एफ़आईआर में नहीं हैं और न ही उन्होंने किसी हिंसक गतिविधि में भाग लिया है. बीते 26 जनवरी को कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान संगठनों द्वारा दिल्ली में ट्रैक्टर परेड का आयोजन किया गया था. इस
आठ अगस्त को दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ नामक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भड़काऊ तथा मुस्लिम विरोधी नारेबाज़ी लगाने के मुख्य आरोपी भूपिंदर तोमर उर्फ़ पिंकी चौधरी ने मंदिर मार्ग थाने में आत्मसमर्पण कर दिया. दिल्ली हाईकोर्ट ने 27 अगस्त को चौधरी को गिरफ़्तारी से अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था.
दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि पुलिस आधे-अधूरे आरोप-पत्र दायर करने के बाद जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने की बमुश्किल ही परवाह करती है, जिस वजह से कई आरोपों में नामज़द आरोपी सलाखों के पीछे बने हुए हैं. ज़्यादातर मामलों में जांच अधिकारी अदालत में पेश नहीं नहीं हो रहे हैं.
राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्ति को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि पहले हाईकोर्ट इस पर फ़ैसला करे, उसके बाद वे निर्णय देंगे. इससे पहले केंद्र ने अस्थाना की नियुक्ति का बचाव करते हुए कहा था कि दिल्ली पुलिस बहुत अलग तरीके से काम करती है.