पिछले महीने प्रकाशित इस वार्षिक रिपोर्ट में से उस तालिका को हटा दिया गया है, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों की संख्या का विवरण होता था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को बीते 9 जुलाई को केंद्र सरकार ने हटा दिया था. प्रतिबंध हटाने का आदेश सरकारी वेबसाइटों पर तो सार्वजनिक कर दिया गया है, लेकिन इस आदेश को पारित करने वाली फाइल को 'गोपनीय' सूची में डाल दिया गया है.
सीईआरटी-इन कंप्यूटर सुरक्षा संबंधी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी है. इसे केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने आरटीआई अधिनियम के दायरे से छूट दी है, जिसकी वजह जानने के लिए आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने आवेदन डाला था.
भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-इन) हैकिंग और फिशिंग जैसे साइबर सुरक्षा ख़तरों से निपटने का काम करती है. यह क़दम एप्पल के सिक्योरिटी नोटिफिकेशन और लगातार रिपोर्ट किए जा रहे नए डेटा उल्लंघनों एवं सुरक्षा संबंधी घटनाओं के बीच उठाया गया है. विशेषज्ञों ने कहा कि अब इस संगठन से पारदर्शिता की मांग करना और कठिन हो जाएगा.
भारत की पहली भ्रष्टाचार-रोधी संस्था लोकपाल को चार साल पहले प्रधानमंत्री समेत सरकारी पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ शिकायतों की जांच के लिए स्थापित किया गया था. इसने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग पर गठित संसदीय समिति को बताया है कि इसके द्वारा आज तक एक भी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के लिए मुक़दमा नहीं चलाया गया है.
एक तरफ जहां सरकार 'अग्निपथ' योजना के तहत नौकरी पाने वाले अग्निवीरों को चार साल की सेवा समाप्ति के बाद सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की बात कह रही है, वहीं एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों और उन पर हुईं नियुक्तियों की संख्या में बड़ा अंतर है.
पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द्वारा सूचना के अधिकार के तहत केंद्रीय सूचना आयोग में दिए दो आवेदनों से पता चला है कि कैसे एकाएक उनके करिअर की समाप्ति के बाद से सरकार ने उनकी पिछली सेवा संबंधी पूरी जानकारी को ज़ब्त कर लिया. इसके बाद उनकी पेंशन, चिकित्सा पात्रता और ग्रैच्युटी समेत सभी सेवानिवृत्ति बकाये, यहां तक कि भविष्य निधि भुगतान भी देने से इनकार कर दिया गया.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने हाल ही में आईएएस (कैडर) नियम, 1954 में बदलाव का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत केंद्र सरकार यदि किसी राज्य सरकार से उसके कैडर का अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मांगती है तो राज्य सरकार इस अनुरोध को ठुकरा नहीं सकती.