धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.
शिवकुटी लाल वर्मा ने अपनी कविता में वह सब महसूस किया, जिसे देश की दलित, पीड़ित व शोषित जनता आज तक महसूस करती आई है. उन्होंने न केवल इसे महसूस किया बल्कि इसे लेकर लगातार सवाल भी किए.