डीएन झा ने राष्ट्रवादी इतिहासकारों द्वारा हिंदू संस्कृति को भारतीय संस्कृति का पर्याय बताने, सामाजिक विषमताओं की अनदेखी की आलोचना की थी. वे कहते थे कि ऐसे लोगों ने राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक औज़ार तो दिया, लेकिन भारतीय इतिहास संबंधी उनका लेखन ब्रिटिश इतिहासकारों से कम समस्याग्रस्त नहीं था.