एक नागरिक और कार्यकर्ता के रूप में सतर्क रहना चाहिए कि राजनीति चंद परिवारों के हाथ में न रह जाए. लेकिन इस सवाल पर बहस करने योग्य न तो अमित शाह हैं, न नरेंद्र मोदी और न राहुल गांधी. सिर्फ जनता इसकी योग्यता रखती है. जब तक ये नेता कोई साफ़ लाइन नहीं लेते हैं, परिवारवाद के नाम पर इनकी बकवास न सुनें.
भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी क्या वाकई वंशवाद के ख़िलाफ़ हैं? अगर हां, तो उनकी पार्टी में इतने परिवारों को जगह कैसे मिली हुई है?