वीडियो: सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानून पर रोक लगाए जाने के साथ चार सदस्यीय टीम गठित की गई है. इस मुद्दे पर प्रदर्शनकारी किसानों से द वायर की बातचीत.
वीडियो: हाल ही में प्रदर्शनकारी किसानों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए कई कलाकार टिकरी बॉर्डर पहुंचे. गीतकार गुरप्रीत सैनी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, अभिनेता आर्य बब्बर, टीवी एंकर जो बाथ, गायक रब्बी शेरगिल और अन्य कलाकारों ने किसानों का समर्थन किया है.
वीडियो: विवादित तीन कृषि क़ानूनों की संवैधानिकता जांचे बिना सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के क़दम की आलोचना हो रही है. विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का ये काम नहीं है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह मान ने कहा कि समिति में उन्हें लेने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट के शुक्रगुज़ार हैं लेकिन किसानों के हितों से समझौता न करने के लिए वे उन्हें मिले किसी भी पद को छोड़ने को तैयार हैं. मान ने यह भी कहा कि वे हमेशा पंजाब और किसानों के साथ हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि क़ानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई समिति में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, प्रमोद कुमार जोशी, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत और भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान शामिल हैं. किसानों ने इन्हें सरकार समर्थक बताते हुए विरोध जारी रखने की बात कही है. इस बीच भूपेंद्र सिंह मान ने ख़ुद को समिति से अलग कर लिया है.
दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर लकड़ियां एकत्र कर जलाई गईं और उसके चारों तरफ घूमते हुए किसानों ने नए कृषि क़ानूनों की प्रतियां जलाईं. इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों ने नारे लगाए, गीत गाए और अपने आंदोलन की जीत की प्रार्थना की. किसान एक महीने से ज्यादा समय से इन क़ानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं.
विवादित तीन कृषि क़ानूनों की संवैधानिकता जांचे बिना सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के क़दम की आलोचना हो रही है. विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का ये काम नहीं है. इससे पहले ऐसे कई केस- जैसे कि आधार, चुनावी बॉन्ड, सीएए को लेकर मांग की गई थी कि इस पर रोक लगे, लेकिन शीर्ष अदालत ने ऐसा करने से मना कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की इस स्वीकारोक्ति से पहले पिछले कुछ महीनों में कई भाजपा नेता किसान आंदोलन में खालिस्तानियों के शामिल होने का आरोप लगा चुके हैं. यहां तक कैबिनेट मंत्री रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल और कृषि नरेंद्र तोमर ने भी इस संबंध में माओवादी और टुकड़-टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानूनों पर रोक लगाते हुए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाने के निर्णय पर किसान संगठनों ने कहा कि वे इस समिति को मान्यता नहीं देते. जब तक क़ानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे.
नाइंसाफी के ख़िलाफ़ किसानों ने इतिहास में हमेशा प्रतिरोध किया है, बार-बार किया है. मौजूदा किसान आंदोलन भी उसी गौरवशाली परंपरा का अनुसरण कर रहा है.
पंजाब भाजपा के सचिव सुखपाल सिंह सरां ने टेलीविजन बहस के दौरान कृषि कानूनों की तुलना गुरु गोबिंद सिंह के ज़फ़रनामे से की थी. ज़फ़रनामा चमकौर के युद्ध के बाद गुरु गोबिंद सिंह द्वारा मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को लिखा एक आध्यात्मिक विजय पत्र है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य के किसानों से खरीदे धान की कस्टम मिलिंग के बाद केंद्रीय पूल में चावल जमा करने की अनुमति मांगी है. राज्य में कई धान बिक्री केंद्रों ने किसानों से कहा है कि धान की पैदावार रखने की जगह न होने के कारण वे अगले कुछ दिनों तक फसल बेचने न आएं.
केरल विधानसभा ने तीन नए कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे 140 सदस्यीय विधानसभा के एकमात्र भाजपा सदस्य ओ. राजगोपाल ने भी समर्थन दिया. हालांकि प्रदेश भाजपा की नाराज़गी के बाद राजगोपाल ने कहा कि उन्होंने सदन में प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था.
कोलकाता की दमदम केंद्रीय जेल में बंद 10 कार्यकर्ता सांकेतिक भूख हड़ताल पर हैं. इन्होंने पत्र लिखकर केंद्र सरकार पर लॉकडाउन और महामारी का लाभ उठाकर कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि क़ानून पारित करने का आरोप लगाया है.
एक ओर कॉरपोरेट्स सभी आर्थिक क्षेत्रों और राज्यों की सीमाओं में अपना काम फैलाने के लिए स्वतंत्र हैंं, वहीं देश भर के किसानों के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ साथ आ जाने पर भाजपा उनके आंदोलन में फूट डालने का प्रयास कर रही है.