मुंबई के मूल निवासी माने जाने वाले कोली समुदाय की महिलाएं कई पीढ़ियों से शहर के सौ से ज़्यादा बाज़ारों में मछली बेचने का काम करती रही हैं. हालांकि, अब शहरी विकास के नाम पर मछली बाज़ारों को शिफ्ट करने या गिराने की कवायद ने उनकी आजीविका संकट में ला दी है.
कुपोषण से जूझ रहे ओडिशा में सरकार ने 2018 में एक योजना के तहत महिलाओं को घर के पास के तालाबों की सफाई के लिए सब्सिडी देते हुए मछली पालन में प्रशिक्षण दिया और मछली के बीज उपलब्ध कराए. आज वे महिलाएं मछली पालन से आजीविका के साथ-साथ पोषण का लाभ भी ले रही हैं.
मन्नार की खाड़ी के आसपास रहने वाले लोग, ख़ासतौर पर महिलाएं आजीविका के लिए समुद्री शैवाल चुनने का काम करती आई हैं. सरकारी प्रतिबंधों के चलते यह काम प्रभावित हुआ है. हालांकि, चुनौतियों से निपटती हुई महिलाओं का मानना कि समुद्र महज़ आजीविका का साधन नहीं, उनका घर भी है.
सुंदरबन में जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज़्यादा है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने, चक्रवातों आदि से खेती की बर्बादी के बाद मछली पकड़ने पर निर्भरता बढ़ गई है. ऐसे में यहां की महिलाओं की मांग है कि यहां वन अधिकार क़ानून लागू हो और मछली पकड़ने के अधिकार को भी इसमें शामिल किया जाए.
पुडुचेरी की अनौपचारिक उर (ग्राम) पंचायतें मछुआरों के कारोबार से लेकर विवाह और इससे जुड़े झगड़ों तक के निपटान के लिए ज़िम्मेदार हैं. हालांकि इनकी सदस्यों में स्त्रियां नहीं थीं, न ही उनकी सुनी जा रही थी. पर अब धीमी रफ़्तार से परिवर्तन आ रहा है.
प्रभुत्ववान जातियों द्वारा मछुआरी औरतों का शारीरिक शोषण एक सामान्य घटना थी. भले वे ब्राह्मण हों, यादव या कोई और, पुरुषों की जाति और धन की शक्ति सुनिश्चित करती थी कि शोषित औरतें उत्पीड़न को उजागर न करें.