‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
116 पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद पहली और दूसरी लहर के बीच मिले समय का इस्तेमाल अहम संसाधन जुटाने में नहीं किया गया. इससे भी अधिक अक्षम्य है कि टीकों का पर्याप्त भंडार जमा करने की पूर्व में योजना नहीं बनाई गई जबकि भारत दुनिया के अहम टीका आपूर्तिकर्ताओं में एक है.
तक़रीबन 101 नौकरशाहों ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अनुरोध किया है कि वो राज्य में किसी भी समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को रोकने का निर्देश दें. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी ज़रूरतमंदों को बराबर चिकित्सा और अस्पताल की सुविधाएं, राशन और वित्तीय सहायता मिले.