अमेरिकी पत्रकार को वापस भेजने संबंधी प्रसार भारती की ख़बर को विदेश मंत्रालय ने ग़लत बताया

देश के सार्वजनिक प्रसारणकर्ता प्रसार भारती ने ट्वीट कर कहा था कि विदेश मंत्रालय ने अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास से भारत विरोधी व्यवहार को लेकर वॉल स्ट्रीट जर्नल के दक्षिण एशियाई डिप्टी ब्यूरो चीफ एरिक बेलमैन को तत्काल प्रभाव से वापस भेजने के एक अनुरोध को देखने के लिए कहा है. हालांकि विदेश मंत्रालय ने इस ख़बर का खंडन किया है.

दिल्ली दंगे की कवरेज पर दो मलयाली चैनलों पर लगाई गई 48 घंटे की पाबंदी, दोबारा प्रसारण शुरू

अपने अभूतपूर्व आदेशों में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने केरल के दोनों चैनलों मीडिया वन और एशियानेट न्यूज टीवी पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक समुदाय का पक्ष लेने और दिल्ली पुलिस और आरएसएस की आलोचना को कारण बताया था.

एडिटर्स गिल्ड ने की वित्त मंत्रालय में मीडिया पर पाबंदी की आलोचना, कहा- वापस लें आदेश

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि सभी मीडियाकर्मियों को मंत्रालय में प्रवेश से पहले अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी वरना उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा.

अधिकारियों से अनुमति लेने के बाद ही वित्त मंत्रालय में प्रवेश कर सकेंगे पत्रकार: केंद्र

बजट पेश होने से कुछ दिन पहले गोपनीयता बनाए रखने के लिए वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है, लेकिन बजट पारित होने के बाद ये पाबंदी हटा ली जाती है. हालांकि, इस बार ऐसा नहीं किया गया.

मोदी सरकार ने तीन अख़बारों को सरकारी विज्ञापन देना बंद किया

सामूहिक रूप से 2.6 करोड़ मासिक पाठक वर्ग वाले तीनों बड़े अख़बार समूहों का कहना है कि मोदी के पिछले महीने लगातार दूसरी बार भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आने से पहले ही उनके करोड़ों रुपये के विज्ञापनों को बंद कर दिया गया.

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया ने केवल विपक्ष से सवाल पूछा: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि सामान्य तौर पर मीडिया की भूमिका सरकार से सवाल पूछने की होती है. लेकिन यहां पर मीडिया ने केवल विपक्ष से सवाल पूछा. विपक्षी पार्टियों से सवाल पूछा गया कि उन्होंने 50 साल पहले कुछ क्यों नहीं किया? क्या मीडिया को यही करना होता है?

यह अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए निराशाजनक दौर है

यह एक कठोर हक़ीक़त है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को बचाए रखने वाले हर क़ानून के अपनी जगह पर होने के बावजूद समाचारपत्रों और टेलीविज़न चैनलों ने बिना प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर दिया है और ऊपर से आदेश लेना शुरू कर दिया है.

प्रेस की आज़ादी के असली दुश्मन बाहर नहीं, बल्कि अंदर ही हैं

मोदी के चुनाव जीतने के बाद या फिर उससे कुछ पहले ही मीडिया ने अपनी निष्पक्षता ताक पर रखनी शुरू कर दी थी. ऐसा तब है जब सरकार और प्रधानमंत्री ने मीडिया को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया है. मीडियाकर्मियों की जितनी ज़्यादा अवहेलना की गई है, वे उतना ही ज़्यादा अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए आतुर नज़र आ रहे हैं.