केंद्रीय रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगड़ी ने कहा कि लोग आर्थिक संकट का दावा करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब कर रहे हैं. हर तीन साल में अर्थव्यवस्था में मांग में गिरावट होती है. यह एक चक्र है. इसके बाद अर्थव्यवस्था फिर पटरी पर आ जाती है.
कोयला उत्पादन में 20.5 फीसदी, कच्चे तेल में 5.4 फीसदी और प्राकृतिक गैस में 4.9 फीसदी तक की कमी आई. विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़ें आर्थिक मंदी की गंभीरता के संकेत हैं.
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर अपने बयान की आलोचना होने पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मुझे दुख है कि मेरे बयान के एक हिस्से को संदर्भों से काटकर दिखाया गया. एक संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते मैं अपना बयान वापस लेता हूं.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि हर किसी ने आर्थिक वृद्धि का जो अनुमान जताया था, वह 5.5 प्रतिशत से कम नहीं था.
जयपुर में एक निजी विश्वविद्यालय में कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत को पांच हजार अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें एक अच्छी तरह से सोची समझी रणनीति की जरूरत है.
कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और रिफाइनरी उत्पादों के उत्पादन में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई.
बिहार के उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील मोदी ने कहा कि वैसे तो हर साल सावन-भादो में मंदी रहती है, लेकिन इस बार मंदी का ज्यादा शोर मचा कर कुछ लोग चुनावी पराजय की खीझ उतार रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछली तिमाही में जीडीपी केवल 5 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जो इस ओर इशारा करती है कि हम एक लंबी मंदी के दौर में हैं. भारत में ज्यादा तेजी से वृद्धि करने की क्षमता है, लेकिन मोदी सरकार के चौतरफा कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी छा गई है.
इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर इतनी कम थी. उस समय ये दर 4.9 फीसदी पर थी.
पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 6.8 फीसदी पर थी. आर्थिक सर्वेक्षण में 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुने से अधिक कर 5,000 अरब डॉलर पर पहुंचाने की विस्तृत रूपरेखा पेश की गई है.
देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था कि साल 2011-12 से 2016-17 के दौरान देश के जीडीपी आंकड़े को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया. इस दौरान जीडीपी सात फीसदी नहीं, बल्कि 4.5 फीसदी बढ़ी है.
देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का कहना है कि साल 2011-12 से 2016-17 के दौरान देश के जीडीपी आंकड़े को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया. इस दौरान जीडीपी सात फीसदी नहीं, बल्कि 4.5 फीसदी की दर से बढ़ी है.
वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रही जो चीन की जनवरी-मार्च 2019 को समाप्त तिमाही में 6.4 प्रतिशत वृद्धि के मुकाबले कम है. राष्ट्रीय आय पर सीएसओ के आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में पूरे साल के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर भी घटकर पांच साल के न्यूनतम स्तर 6.8 प्रतिशत रही है.
कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के कमज़ोर प्रदर्शन और उपभोक्ता मांग घटने से जीडीपी की रफ़्तार कम हुई है.
देश की आर्थिक वृद्धि दर इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही ‘अप्रैल-जून’ में 8.2 प्रतिशत रही. पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही ‘जनवरी-मार्च’ में यह 7.7 प्रतिशत रही.