महाराष्ट्र की अपराध जांच विभाग (सीआईडी) कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे की हत्या की जांच कर रही है, जबकि अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता के रूप में चर्चित रहे नरेंद्र दाभोलकर की हत्या मामले की जांच की ज़िम्मेदारी सीबीआई को दी गई है. पुणे में दाभोलकर की हत्या साल 2013 में, जबकि कोल्हापुर में पानसरे की हत्या 2015 में कर दी गई थी.
अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. दाभोलकर के परिवार ने कहा है कि सीबीआई को इस साज़िश के मास्टरमाइंड को खोजना होगा, वरना तर्कवादी विचारकों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के लिए ख़तरा बना रहेगा.
सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार गौरी लंकेश की पांच सितंबर 2017 को उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एसआईटी ने बताया कि गिरफ़्तार आरोपी गौरी लंकेश की हत्या की साज़िश का हिस्सा है और इस मामले में 18वां आरोपी है.
सीबीआई के वकील ने अदालत को बताया कि आशंका है कि हत्यारों ने हत्या के बाद हथियार ठाणे की खाड़ी में फेंक दिया, इसकी तलाश के लिए विदेशी एजेंसी की मदद ली जा रही है.
हत्यारों को जिस जगह कथित तौर पर प्रशिक्षण दिया गया था, वो जगह सनातन संस्था और इससे संबद्ध हिंदू जनजागृति समिति से जुड़े हुए एक बिजनेसमैन की है.
सीबीआई का कहना है कि गोविंद पानसरे की हत्या के अलावा शरद कालस्कर का नाम सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर और गौरी लंकेश की हत्या के मामले में भी सामने आया था और इन मामलों में उसकी गिरफ़्तारी भी हो चुकी है.
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे हत्या मामलों की धीमी जांच पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के पास गृह सहित 11 विभाग हैं लेकिन इस मामले को देखने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है.
बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य को अपने विचारकों और तर्कवादियों पर गर्व महसूस करना चाहिए.
कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की पत्नी ने उनकी हत्या की एसआईटी जांच की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. शीर्ष अदालत ने कहा कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच की निगरानी में होगी एसआईटी जांच.
कोर्ट ने सीबीआई को जनवरी के पहले सप्ताह में यह सूचित करने का निर्देश दिया कि यदि इन सभी मामलों में एक समानता नज़र आती है तो उसे सभी मामलों की जांच क्यों नहीं करनी चाहिए.
गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच कर रहे विशेष जांच दल द्वारा शुक्रवार को स्थानीय अदालत में दाखिल अतिरिक्त आरोप पत्र में यह भी बताया कि संस्था की 'हिट लिस्ट' में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन का भी नाम था.
73 वर्षीय साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार दामोदर माऊजो ने कहा कि 2009 के मारगाओ ब्लास्ट के बाद सनातन संस्था पर कार्रवाई हुई होती तो गौरी लंकेश, नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी और गोविंद पानसरे जैसे लोगों की हत्या नहीं होती.
अदालत ने कहा कि दाभोलकर और पानसरे के बाद अन्य लोगों को निशाना बनाने के लिए उनके नामों की सूची मीडिया में फैलाई जा रही है. उदारवादियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को डर है कि अगर वे अपने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते हैं तो उन्हें निशाना बनाया जा सकता है.
अदालत ने जांच एजेंसियों से पूछा कि क्या अधिकारियों के बीच सामंजस्य की कमी है या फिर अधिकारियों ने अपनी जांच मात्र मोबाइल फोन रिकॉर्ड तक सीमित कर दी है.