आज़ादी के ‘अमृतकाल’ में ग़ुलामी के दौर के संकटों से पार पाने के आंदोलन याद करना ज़रूरी है

‘अमृतकाल’ में यह याद रखना कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है कि ग़ुलाम भारत ने कैसे-कैसे त्रास झेले और कितना खून या पसीना बहाकर उनसे निजात पाई. इनमें किसानों व मज़दूरों का सबसे बड़ा त्रास बनकर उभरी ‘हरी-बेगारी’ का नाम सबसे ऊपर आता है, जिससे मुक्ति का रास्ता असहयोग आंदोलन से निकला था.