हालिया सालों में कई दक्षिण एशियाई देशों में हिंसक तरीके से सरकारें गिराई गई हैं. अपने पड़ोस में भारत की कूटनीतिक विफलताएं क्या रहीं? क्या भारत कुछ अलग कर सकता था? इस बारे स्वतंत्र पत्रकार और विदेश मामलों की विशेषज्ञ निरुपमा सुब्रमण्यम से द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.
बांग्लादेश में भारत के विरोध के तीन प्रमुख कारण नज़र आते हैं- सांप्रदायिक ताक़तें, दक्षिणपंथी राजनीतिक दल और घरेलू कारणों से भारत को लेकर खड़ा किया गया भय.
भारत के लिए आवश्यक है कि वह बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों से अच्छे संबंध कायम करे. यह रेखांकित करना चाहिए कि विपक्ष को 40 फीसदी मतदाताओं का समर्थन है
हाल के वर्षों में घरेलू और आयातित सौर मॉड्यूल के बीच मूल्य अंतर काफी बढ़ गया है. वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 6% की तुलना में, घरेलू मॉड्यूल वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 50% अधिक महंगे हो गए,जबकि वित्तीय वर्ष 2025 की पहली तिमाही में लगभग दोगुने महंगे हो गए.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी ने कहा है कि विश्वविद्यालय वर्तमान में गंभीर वित्तीय दवाब में है. हम अपनी संपत्तियों को नए उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं. 35 फिरोजशाह रोड की संपत्ति का हम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से पुनर्विकास करना चाहते हैं. गोमती गेस्ट हाउस को हम निजी संस्था को किराए पर देने का विचार कर रहे हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: समाज, शिक्षा, धर्म, मीडिया आदि में जो ज़हर फैल गया है वह रातोंरात ग़ायब नहीं हो जाएगा, न हो रहा है. हमारे समय का एक दुखद अंतर्विरोध यह है कि ये शक्तियां अब भी हावी और सक्रिय हैं, उन्हें समर्थन देने वाला पढ़ा-लिखा मध्यवर्ग झांसों-वायदों की गिरफ़्त में है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में चीन से आयात बढ़ाने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने पर जोर दिया गया है. हालांकि, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है.
'आज़ादी की लड़ाई हमेशा जारी रहती है. कभी उसका अंत नहीं होता. हमेशा उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है, हमेशा उसके लिए क़ुर्बानी करनी पड़ती है, तब वह क़ायम रहती है.'
निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरियों के घटते जाने और कम गुणवत्ता वाले व्यावसायिक कॉलेजों से पास होने वाले छात्रों की भीड़ के कारण फ़र्ज़ी नौकरियों के प्रस्ताव बड़े पैमाने पर और भी अधिक भ्रामक हो गए हैं.
एनसीईआरटी ने कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से देश में गठबंधन सरकार चला चुके प्रधानमंत्रियों को दिखाने वाले एक कार्टून को यह कहते हुए हटाया है कि यह भारत को नकारात्मक तरीके से दिखाता है.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में विदेश मंत्री के समान कद रखने वाले मोहम्मद तौहीद हुसैन ने देश के लोगों से भारत को एक क़रीबी मित्र के रूप में देखने की भी अपील की है.
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के एक छात्र के शोध प्रस्ताव में अमेरिकी भाषाविद् नोम चॉम्स्की द्वारा नरेंद्र मोदी की आलोचना का ज़िक्र था. इस पर छात्र को नोटिस मिला और उनके श्रीलंकाई मूल के सुपरवाइज़र, प्रोफेसर ससांक परेरा के ख़िलाफ़ जांच शुरू की गई, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
भारतीय संसद द्वारा पारित 'जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019' के तहत लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, विकास के तमाम दावे किए गए थे. क्या बीते पांच साल में लद्दाख की बयार बदली है?
शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ हुआ विद्रोह अपनी तार्किक परिणति पर तब तभी पहुंच सकता है जब वह छात्रों को सुनेगा: यह आंदोलन एक ऐसा समाज बनाने का आंदोलन है जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न होगा.
क्या बांग्लादेश की आर्थिक तरक्की के गुब्बारे में गैर-बराबरी की हवा थी या शेख हसीना का भारत समर्थक रवैया उन्हें ले डूबा? उनका राजनीतिक अवसान भारत के लिए चिंता का विषय क्यों है?