मलियाना दंगे और जयपुर विस्फोट मामले में अदालतों ने घटिया जांच और आपराधिक जांच प्रणाली में जवाबदेही की कमी की बात कही है. जहां राजस्थान में विपक्षी भाजपा के साथ कांग्रेस सरकार फैसले के ख़िलाफ़ अपील की बात कह रही है, वहीं मलियाना मामले में यूपी की भाजपा सरकार के साथ विपक्ष ने भी कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी है.
13 मई, 2008 को जयपुर में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों में 71 लोगों की मौत हो गई थी. ट्रायल कोर्ट ने साल 2019 में मामले के चार आरोपियों को मौत की सज़ा सुनाई थी. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि साक्ष्य का कोई भी पहलू साबित नहीं हुआ और कुछ साक्ष्य मनगढ़ंत भी प्रतीत होते हैं. दोषी पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ जांच के निर्देश भी दिए गए.
याचिकाकर्ता मंज़र इमाम को 1 अक्टूबर 2013 को इंडियन मुजाहिदीन से संबंध रखने के आरोप में एनआईए ने गिरफ़्तार कर लिया था, वे तब से जेल में हैं और अब तक उन पर आरोप भी तय नहीं हुए हैं.
एनआईए ने 27 अक्टूबर 2013 को बिहार की राजधानी पटना में नरेंद्र मोदी की एक चुनावी रैली के स्थान पर हुए इन विस्फोटों के सिलसिले में कुल 11 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया था. किसी आतंकवादी संगठन ने इस घटना की ज़िम्मेदारी नहीं ली थी, लेकिन संदेह था कि इस घटना के पीछे प्रतिबंधित संगठन सिमी और इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है.
राष्ट्रीय राजधानी में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के छह दिन बाद 19 सितंबर 2008 को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के नेतृत्व में सात सदस्यीय एक टीम ने दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर इलाके में स्थिति बटला हाउस में इंडियन मुजाहिदीन के कथित आतंकियों की तलाश में छापा मारा था, जब उन पर फायरिंग शुरू हो गई थी. इस दौरान इंस्पेक्टर शर्मा शहीद हो गए थे.