प्रेमचंद के विचारों की प्रासंगिकता समझने के लिए उनका पुनर्पाठ ज़रूरी है

विशेष: हर रचनाकार और उसकी रचना अपना पुनर्पाठ मांगती है. इस कड़ी में 'ईदगाह' को दोबारा पढ़ते हुए प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थ के चित्रण की सूक्ष्मता, अर्थ के व्यापक और विविध स्तरों को समझ पाने की एक नई दृष्टि मिलती है.

दलितों को इंसान समझे जाने का अभी भी इंतज़ार है: यशिका दत्त

वीडियो: हाल ही में यशिका दत्त को उनकी अंग्रेज़ी संस्मरणात्मक किताब ‘कमिंग आउट ऐज़ अ दलित’ के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यशिका दत्त से दामिनी यादव की बातचीत.

कोरोना से पहले ही धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद की महामारी का शिकार हुआ देश: अंसारी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नई किताब के डिजिटल विमोचन पर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि आज देश ऐसे ‘प्रकट या अप्रकट’ तौर पर ऐसे विचार और विचारधाराओं से ख़तरे में है जो उसे ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं.

राष्ट्रवाद और डंडावाद

प्रेमचंद महात्मा गांधी की आंदोलन पद्धति के मुरीद थे. सशस्त्र आतंक के ज़रिये क्रांति या मुक्ति के नारे प्रेमचंद का खून गर्म नहीं कर पाते क्योंकि वे हिंसा के इस गुण या अवगुण को पहचानते थे कि वह कभी भी शुभ परिणाम नहीं दे सकती.

महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने के लिए दिए जा रहे तर्क निराधार और विवेकहीन हैं

केंद्र सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की क़ानूनन उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के लिए कम उम्र की मांओं और उनके शिशु की सेहत से जुड़ी समस्याओं को वजह बताया जा रहा है. पर उनकी ख़राब सेहत की मूल वजह ग़रीबी और कुपोषण है. अगर वे ग़रीब और कुपोषित ही रहती हैं, तो शादी की उम्र बदलने पर भी ये समस्याएं बनी रहेंगी.

साहित्यिक कुपाठ के निशाने पर प्रेमचंद

जून महीने के आख़िरी हफ्ते में मासिक पत्रिका हंस के संपादक संजय सहाय ने कहा कि प्रेमचंद यथास्थितिवादी, प्रतिगामी थे और उनकी 25-30 कहानियों को छोड़कर अधिकतर कहानियां ‘कूड़ा’ हैं.

प्रेमचंद के विचारों को उनके जन्म के सौ साल बाद याद करने की ज़रूरत क्यों है…

विशेष: प्रेमचंद अगर आज के हालात, ख़ासकर तथाकथित संस्कृति बचाने वालों को देखते, तो शायद अवसाद में चले जाते. उन्हें संस्कृति राजनीतिक स्वार्थ-सिद्धि के लिए इस्तेमाल होने वाला महज़ साधन लगती थी और उनके अनुसार यही तथाकथित संस्कृति, सांप्रदायिकता को भी स्वार्थ पूरे करने के अवसर देती थी.

‘जस्टिस गोगोई के राज्यसभा पहुंचने के बाद हर जज और उनके दिए फ़ैसले पर सवाल उठेंगे’

पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत करने की पूर्व न्यायाधीशों और विपक्षी दलों ने आलोचना की है. ऐसा भी कहा गया कि उन्हें सरकार को फायदा पहुंचाने के एवज में यह पद मिला है. इस बारे में पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

कृतज्ञता का भाव ग़ैर-बराबरी और नाइंसाफी की स्थिति से जुड़ा हो, तो हिंसा पैदा होती है

कृतज्ञता के साथ जब अपनी लाचारी का एहसास जुड़ जाए तो मनुष्य उससे मुक्त होना चाहता है. एक समुदाय ही रहम, कृपा, राहत का पात्र बनता रहे यह वह कबूल नहीं कर सकता. वह बराबरी हासिल करना चाहता है.

शिक्षा, संपन्नता से बढ़ रहे तलाक के मामलेः मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत में हिंदू समाज का कोई विकल्प नहीं है और हिंदू समाज के पास एक परिवार की तरह व्यवहार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

राष्ट्रवाद और देशभक्ति सिर्फ़ नारा नहीं: जावेद अख़्तर

पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख़्तर ने कहा कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मतलब सामाजिक रूप से जागरूक होना होता है. यह सिर्फ़ नारा नहीं बल्कि एक जीवनशैली है.

विश्वविद्यालयों में किसी को भी ‘राष्ट्र विरोधी’ बताकर चुप नहीं कराया जाना चाहिए: रघुराम राजन

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि समाज के तौर पर ऐसे सुरक्षित स्थानों का निर्माण करना होगा, जहां बहस और चर्चाएं होती हैं, लोग अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर रहे हों, बोलने के लिए किसी लाइसेंस की ज़रूरत न हो.

पर्यावरण को यह छूट कभी हासिल नहीं रही कि वह किसी हुकूमत की राह का रोड़ा बने

पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अभिजात्य और शासक वर्गों में पर्यावरण और सामाजिक-नागरिक प्रतिरोध के केंद्र के रूप में सघन वन्य इलाक़ों को नकारात्मक रूप से देखने की प्रवृत्ति मिलती है.

क्यों महिलाओं की आर्थिक-राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई बाज़ार के डिस्काउंट तक सिमट गई है?

अंतरराष्ट्रीय ‘श्रमजीवी’ महिला दिवस से श्रमजीवी शब्द को हटाना मज़दूर महिलाओं के संघर्ष और इस दिन के इतिहास के महत्व को कम करता है.

युवाओं को सपने देखने दें, उन्हें उनका हक़ दें: प्रियंका चोपड़ा

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि शिक्षित होना और सशक्त होना अलग-अलग बाते हैं. सशक्त व्यक्ति ग़लत मान्यताओं और परंपराओं के ख़िलाफ़ खड़ा होना जानता है.