आईटी अधिनियम की निरस्त धारा 66ए के तहत किसी के ख़िलाफ़ मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता: कोर्ट

सीजेआई उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों के पुलिस महानिदेशकों, गृह सचिवों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के सक्षम अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बल को धारा 66ए के प्रावधानों के कथित उल्लंघन के मामले में कोई आपराधिक शिकायत दर्ज न करने दें.

रद्द किए जाने के बाद भी आईटी एक्ट की धारा 66ए का इस्तेमाल गंभीर चिंता का विषय: सुप्रीम कोर्ट

मार्च 2015 में आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दी थी, जिसके तहत आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर तीन साल तक की क़ैद और जुर्माने का प्रावधान था. सुप्रीम कोर्ट पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ की उस याचिका को सुन रहा है, जिसमें बताया गया है कि अब भी राज्यों द्वारा इस धारा के तहत केस दर्ज किए जा रहे हैं.

आईटी अधिनियम की रद्द धारा 66ए के तहत मुक़दमे दर्ज किए जाने पर राज्यों को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने पांच जुलाई को इस बात पर हैरानी ज़ाहिर की थी कि लोगों के ख़िलाफ़ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत अब भी मुक़दमे दर्ज हो रहे हैं, जबकि शीर्ष अदालत ने 2015 में ही इस धारा को अपने फैसले के तहत निरस्त कर दिया था.

आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न करने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर: केंद्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. बीते 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इसे ख़त्म किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा इस धारा के तहत केस दर्ज किए जाने पर हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार नोटिस जारी किया था. इसके ख़िलाफ़ दायर याचिका में कहा गया है कि असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद भी धारा 66ए के तहत दर्ज होने वाले मामलों में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है.

गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा- आईटी क़ानून की धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न किए जाएं

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. बीते 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इसे ख़त्म किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा इस धारा के तहत केस दर्ज किए जाने पर हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार नोटिस जारी किया था.

रद्द होने के 6 साल बाद भी आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज होने पर सुप्रीम कोर्ट हैरान

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. इसके तहत कंप्यूटर या कोई अन्य संचार उपकरण जैसे मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने के लिए दंड निर्धारित किया गया और दोषी को अधिकतम तीन साल की जेल हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के ख़त्म किए जाने के बाद भी राज्यों द्वारा इसके तहत केस दर्ज किए जाने पर केंद्र सरकार नोटिस जारी किया है.