विशेष: यशपाल के लिए साहित्यिकता अपने विचारों को एक बड़े जन-समुदाय तक पहुंचाने का माध्यम थी. पर इस साहित्यिकता का निर्माण विद्रोह और क्रांति की जिस चेतना से हुआ था, वह यशपाल के समस्त लेखन का केंद्रीय भाव रही. यह उनकी क्रांतिकारी चेतना ही थी जो हर यथास्थितिवाद पर प्रश्न खड़ा करती थी.
‘मित्रो मरजानी’ के बाद सोबती पर पाठक फ़िदा हो उठे थे. ये इसलिए नहीं हुआ कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थीं. ऐसा हुआ क्योंकि उनकी महिलाएं समाज में तो थीं, लेकिन उनका ज़िक्र करने से लोग डरते थे.