जो दुख में है, पीड़ित है, उसी की खिल्ली उड़ाने का नया रिवाज इस देश में चल पड़ा है. इसे क्या मात्र क्षुद्रता कहा जाए? या यह बड़ा चारित्रिक पतन है? हर कुछ रोज़ पर इस क्षुद्रता का एक नया नमूना देखने को मिलता है. अभी यूक्रेन पर रूसी हमले के समय यह फिर उभर आई है.