पटना हाईकोर्ट ने एक ज़मानत याचिका का निस्तारण करते हुए शराबबंदी लागू होने के बाद ज़हरीली शराब की त्रासदी को इस क़दम का सबसे चिंताजनक परिणाम बताया. साथ ही राज्य सरकार को नकली शराब के सेवन से बीमार होने वालों के इलाज के लिए मानक प्रोटोकॉल विकसित करने में विफल रहने पर फटकार लगाई.
बिहार विधान परिषद में राज्य के सख़्त शराब निषेध क़ानून में संशोधन के लिए चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराब पीने वालों को कोई कानूनी राहत नहीं मिलेगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नकली शराब पीने से मरने वालों के परिवारों को कोई राहत नहीं मिलेगी.
संशोधित क़ानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से ज़मानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकारते हुए कहा कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए क़ानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुक़दमे बढ़ाएगा, किस तरह का बुनियादी चाहिए होगा और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की ज़रूरत पड़ेगी.
ये प्रस्तावित संशोधन शराबबंदी क़ानून को लेकर बिहार सरकार की आलोचना के बाद किए गए हैं. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने राज्य के शराबबंदी क़ानून को लेकर दूरदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए कहा था कि इसकी वजह से हाईकोर्ट में बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं लंबित पड़ी हैं.