पुस्तक समीक्षा: मंगलेश डबराल की 'प्रतिनिधि कविताएं' पढ़ते हुए लगता है मानो वे कह रहे हों कि ईमानदारी और मनुष्यता ख़ुद से बची रहने वाली चीज़ें नहीं हैं. वे इसे मनुष्य की अपने साथ एक लगातार चलने वाली जद्दोजहद मानते हैं.
वीडियो: हिंदी की बिंदी में आज हम जिस कवि को याद कर रहे हैं, वे हैं मंगलेश डबराल, जिन्होंने हाल ही में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.
स्मृति शेष: मंगलेश डबराल उस यातना को जानते थे जो मनुष्य ने मनुष्य को दी है. दुनिया की अलग-अलग भाषाओं से किए गए उनके अनुवाद इस बात के साक्षी हैं. इसीलिए वे उस संघर्ष की कठिनाई से भी परिचित थे जो इस यातना की संस्कृति को ख़त्म करने का है.