व्हाइट हाउस ने कहा, ट्रंप की मनोचिकित्सा जांच नहीं होगी, ट्रंप ने किताब को बताया झूठ का पुलिंदा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पूरा होने में करीब 16 महीने का वक़्त बाकी रह गया है. लेकिन उन्हें ख़ुद को और अपनी सरकार को स्वतंत्र प्रेस के प्रति जवाबदेह बनाने की ज़रूरत आज तक महसूस नहीं हुई है.
विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों से जुड़े 9 पत्रकारों ने अपनी याचिका में कहा कि सुनवाई की मीडिया कवरेज पर पाबंदी ग़ैर-क़ानूनी है.
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने भारत में पत्रकारों की हत्या की निंदा करते हुए ऐसी घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर की है.
यह वह अयोध्या नहीं है जिसको सार्वजनिक कल्पना में विहिप और भाजपा या दिल्ली के तथाकथित लिबरल्स व मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने स्थापित किया है. यह एक सामान्य शहर है.
देश के वामपंथी और समाजवादी बौद्धिकों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का पूरा दारोमदार मंडलवादी और आंबेडकरवादी आंदोलनों पर डाल दिया लेकिन इन आंदोलनों ने देश को इतने भ्रष्ट नेता दिए कि उनके पास धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का नैतिक बल ही नहीं बचा.
पिछले नौ साल में बैंकों ने 2 लाख 28 हज़ार रुपये का लोन माफ़ कर दिया है. क्या इससे अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क पड़ा, सिर्फ़ किसानों के समय फ़र्क पड़ता है.
मीडिया से सवाल पूछने की बात करना बेकार है क्योंकि वह सवाल पूछना भूल चुकी है.
पत्रकारों ने इस पर एतराज़ जताते हुए कहा कि कार्यवाही की रिपोर्टिंग सही उद्देश्यों को लेकर है ताकि लोग मामले की प्रगति जान सकें.
जन गण मन की बात की 157वीं कड़ी में विनोद दुआ कॉरपोरेट क़र्ज़माफ़ी को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली की सफ़ाई के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जन गण मन की बात की 156वीं कड़ी में विनोद दुआ गुजरात मॉडल के सच और नरेंद्र मोदी की गुजरात रैलियों के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जन गण मन की बात की 155वीं कड़ी में विनोद दुआ ईवीएम से छेड़छाड़ की हालिया ख़बर और सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बृजगोपाल लोया की 'संदिग्ध' मौत पर उठे सवालों के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जन गण मन की बात की 154वीं कड़ी में विनोद दुआ यूथ कांग्रेस द्वारा ट्वीट किए गए मीम और स्वच्छ भारत अभियान के प्रचार पर हुए ख़र्च के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जन गण मन की बात की 153वीं कड़ी में विनोद दुआ राजनीति में वंशवाद और मीडिया के विरोध प्रदर्शनों की कवरेज न करने पर चर्चा कर रहे हैं.
राष्ट्रीय प्रेस दिवस के मौके पर राजस्थान की वसंधुरा सरकार के ‘काले क़ानून’ पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए राजस्थान पत्रिका अख़बार ने अपना संपादकीय ख़ाली छोड़ दिया.