बीते 17 दिनों से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसान केंद्र द्वारा लाए गए नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्योगपतियों से कृषि क्षेत्र में निवेश की अपील करते हुए कहा कि कृषि में निजी क्षेत्र की ओर से जितना निवेश होना चाहिए था वहीं नहीं हुआ है.
विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद शुरू होने पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर अपने कृषि उत्पादन नहीं बेचना है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुकाबले प्रदेश की मंडियों में एमएसपी से कम पर बिक्री तो हो ही रही है, सरकारी ख़रीद भी काफी कम है. रफ़्तार इतनी धीमी है कि ख़रीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं ख़रीद पा रहे हैं.
विशेष रिपोर्ट: बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि मंत्रालय के पोर्टल से मिले आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि अक्टूबर-नवंबर में एमएसपी से कम दाम पर कृषि उपजों की बिक्री से किसानों को क़रीब 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की है.
कुल 13 आंदोलनकारी किसान संगठनों को भेजे गए मसौदा प्रस्ताव में सरकार ने कहा कि सितंबर में लागू किए गए नए कृषि क़ानूनों के बारे में उनकी चिंताओं पर वह सभी आवश्यक स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार है, लेकिन सरकार ने क़ानूनों को वापस लेने की किसानों की मुख्य मांग के बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया था.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में मुख्य मिट्टी रसायनज्ञ डॉ. वरिंदरपाल सिंह ने केंद्रीय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा के हाथों से पुरस्कार लेने से इनकार करते हुए कहा कि मेरा ज़मीर इसकी अनुमति नहीं देता, क्योंकि भारत सरकार ने शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को बेवजह तकलीफें दी हैं.
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते 14 दिनों से किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. वे इन क़ानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा आहूत भारत बंद का देश में मिला-जुला असर रहा. कुछ राज्यों में जनजीवन प्रभावित हुआ, वहीं कुछ राज्यों में सामान्य बना रहा.
कृषि क़ानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसानों को ‘खालिस्तानी’ घोषित करना भाजपा के उसी प्रोपगेंडा की अगली कड़ी है, जहां उसकी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को ‘देश-विरोधी’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ या ‘अर्बन नक्सल’ बता दिया जाता है.
एक्सक्लूसिव रिपोर्ट: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कृषि क़ानूनों का समर्थन करते हुए कहा है कि उनकी सरकार ने 2006 में एपीएमसी एक्ट ख़त्म कर दिया, जिसका बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि बिहार के कृषि मंत्रालय ने केंद्र को पत्र लिखकर बताया था कि उनके यहां न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही अनाज ख़रीदने की अच्छी व्यवस्था.
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि क़ानूनों को निरस्त किए जाने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 12 दिन से किसानों का आंदोलन जारी है. सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच शनिवार को पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही थी. इसके बाद केंद्र ने गतिरोध समाप्त करने के लिए नौ दिसंबर को एक और बैठक बुलाई है.
हरियाणा के जींद के उचाना इलाके के कई खाप नेताओं ने किसानों के विरोध के बारे में कथित विवादित बयानों के लिए हरियाणा के कृषि और किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल और अभिनेत्री कंगना रनौत का भी विरोध किया. केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में बीते 26 नवंबर से किसानों का प्रदर्शन जारी है.
मीडिया बोल: कृषि क़ानूनों का विरोध में किसानों के आंदोलन को बदनाम करने का अभियान तेज हो गया है. तमाम न्यूज़ चैनल किसानों के पीछे कभी विदेशी तो कभी खालिस्तानी और कभी विपक्ष हाथ बता रहे हैं. इस मुद्दे पर पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र कार्यकर्ता रमन प्रीत सिंह और पंजाब के स्वतंत्र पत्रकार शिव इंदर सिंह से उर्मिलेश की बातचीत.
इससे पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों के विरोध में बीते तीन दिसंबर को दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण को वापस कर दिया था. पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित कुछ खिलाड़ियों ने भी अपने सम्मान लौटाने की बात कही है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि बिना साक्ष्य के किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही बताने की कोशिश ज़िम्मेदार पत्रकारिता नहीं है. इससे मीडिया की विश्वसनीयता ख़तरे में आती है. मीडिया को ऐसे किसी विमर्श में संलिप्त नहीं होना चाहिए जो प्रदर्शनकारियों को उनकी वेशभूषा के आधार पर अपमानित करता हो और उन्हें हीन मानता हो.
किसान नेताओं ने कहा कि यदि केंद्र सरकार उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करती है तो वे आंदोलन को और तेज़ करेंगे. उनका कहना है कि पांच दिसंबर को देश भर में प्रधानमंत्री का पुतला फूंका जाएगा. तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.