रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने बैंकों को सुझाव दिया है कि वे मुद्रा लोन देते समय दस्तावेज़ों की जांच-परख के स्तर पर क़र्ज़ किस्त के भुगतान की क्षमता पर भी गौर करें और इस तरह के क़र्ज़ का उनकी पूरी अवधि तक निगरानी करें.
मुद्रा योजना पर केंद्रीय श्रम मंत्रालय की सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इस योजना के तहत जितने अतिरिक्त रोजगार पैदा हुए उसमें आधे से भी ज्यादा स्व-रोजगार थे.
आरटीआई के तहत प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक मुद्रा योजना के तहत कुल 30.57 लाख खातों का 16,481.45 करोड़ रुपये एनपीए घोषित किया गया है.
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में केवल 1.12 करोड़ रोज़गार ही पैदा किए जा सके.
आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे मोदी सरकार ने दबा दिया है. इससे पहले उसने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी जारी होने से रोक दिया था.
मोदी सरकार द्वारा बीते चार सालों में बदलाव के बड़े दावों के साथ शुरू की गईं विभिन्न योजनाएं कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर पाने में नाकाम रही हैं.
किसी बेरोज़गार के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम करने वाली कोई भी कमाई सांत्वना देने वाली होगी, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें गर्व का अनुभव नहीं कर सकते, न ही उन्हें करना चाहिए.