मुग़लकाल को पाठ्यक्रम से बाहर निकलवाकर ‘औरंगज़ेब-औरंगज़ेब’ खेलना क्या कहता है?

यह निर्णायक बात कि इस बहुभाषी-बहुधर्मी देश में सुलह, समन्वय, सामंजस्य और शांति के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है, अकबर के वक़्त यानी सोलहवीं शताब्दी में ही समझ ली गई थी, उसे आज क्यों नहीं समझा जा सकता?