पुलिस ने 2006 में उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के जानसठ रोड पर एक मांस फैक्ट्री के बाहर प्रदर्शन के बाद विधायक समेत कई लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया था. इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य के अभियोजक उच्च न्यायालयों की पूर्व मंज़ूरी के बिना सीआरपीसी के तहत जन प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे वापस नहीं ले सकते हैं.
न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे से जुड़े वापस लिए गए मामलों का संबंध ऐसे अपराधों से हैं जिनमें उम्रक़ैद की सज़ा हो सकती है.