संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश मसौदा प्रस्ताव पड़ोसी एवं क्षेत्रीय देशों से सलाह किए बगैर जल्दबादी में लाया गया. यह न सिर्फ़ ग़ैर-मददगार है, बल्कि म्यांमार में मौजूदा स्थिति का समाधान तलाशने के लिए आसियान के प्रयासों के प्रतिकूल भी साबित हो सकता है.
मिज़ोरम पुलिस के अपराध जांच शाखा के आंकड़े के अनुसार राज्य के दस ज़िलों में म्यांमार के करीब 9,247 लोग ठहरे हुए हैं और उनमें से सबसे अधिक 4,156 चंफाई में हैं. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि म्यांमार के इन नागरिकों को स्थानीय लोगों ने आश्रय दिया है और कई नागरिक एवं छात्र संगठन भी उनके रहने एवं खाने-पीने का प्रबंध कर रहे हैं.
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा का कहना है कि भारत को म्यांमार से आने वाले लोगों के प्रति उदार रवैया रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि वे अपने एक प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली भेजकर केंद्र सरकार से म्यांमार के शरणार्थियों को वापस न भेजने को लेकर विदेश नीति में बदलाव करने का निवेदन करेंगे.
तख़्तापलट के बाद सैन्य शासन के ख़िलाफ़ म्यांमार में चल रहे प्रदर्शन के दौरान हुए संघर्ष में बीते 27 मार्च को तकरीबन 90 लोगों की मौत हो गई थी. लोकतंत्र समर्थक समूहों ने पूछा है कि दुनिया के सबसे महान लोकतंत्रों में से एक भारत ने क्यों जनरलों से हाथ मिलाने के लिए एक प्रतिनिधि क्यों भेजा, जिनके हाथ हमारे खून से लथपथ हैं.
मणिपुर सरकार द्वारा म्यांमार की सीमा से सटे ज़िलों के उपायुक्तों को 26 मार्च को जारी एक आदेश में सैन्य तख़्तापलट के बाद म्यांमार से भागकर आ रहे शरणार्थियों को आश्रय और खाना देने से इनकार और उन्हें 'शांतिपूर्वक' लौटाने की बात कही गई थी. कड़ी आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया.
भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में मौजूद जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन ने गृह मंत्रालय से यह भी आग्रह किया कि वह म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिज़ोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश को उस देश से आने वाले लोगों को रोकने का अपना आदेश वापस ले.
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के चलते राज्य में आ रहे वहां के नागरिकों को मानवीय आधार पर शरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है.