इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एनएमसी द्वारा प्रिस्क्रिप्शन में अनिवार्य रूप से जेनेरिक दवाएं लिखने के नियम को वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि देश में निर्मित 1% से भी कम जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है. सरकार और डॉक्टर रोगी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकते.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई में दिए गए जवाब में कहा है कि फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को रिश्वत देने से रोकने के लिए स्वैच्छिक तौर पर लागू यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस ही पर्याप्त है. हालांकि, पूर्व में सरकार अनिवार्य क़ानून की ज़रूरत पर जोर देती रही है.
सुप्रीम कोर्ट फार्मा कंपनियों के कथित अनैतिक व्यवहारों पर अंकुश लगाने और एक प्रभावी निगरानी तंत्र के लिए समान कोड बनाने की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जहां फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने बताया कि मरीज़ों को डोलो 650 लिखने के लिए इसकी निर्माता कंपनी ने डॉक्टरों को हज़ार करोड़ रुपये के तोहफे दिए हैं.
ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया ने जांच में पाया है कि प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत बांटी जाने वाली देश की 18 फार्मा कंपनियों की दवाओं के 25 बैच गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं. इन कंपनियों में 17 निजी क्षेत्र और एक सार्वजनिक क्षेत्र की है.