‘इंडियाज इंदिरा: अ सेंटेनियल ट्रिब्यूट’ नाम की किताब का विमोचन करते हुए राष्ट्रपति ने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री से जुड़े अनुभव साझा किए.
मुसलमानों के एक तबके में भाजपा को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन भाजपा की तरफ़ से ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है कि मुसलमानों के लिए कुछ किया हो.
सांसद समेत अन्य लोग फर्ज़ी कागज़ातों के ज़रिये दलित और आदिवासियों के अधिकार छीन रहे हैं.
यूपी के चुनावों की जीत ने हिंदुत्व की ताकतों को यह आत्मविश्वास दिया है कि वह अपने बुनियादी सांस्कृतिक एजेंडे को लेकर अब अस्पष्टता न रखें बल्कि खुलकर सामने आएं.
आप शंकराचार्यों की बेअसर पड़ चुकी पीठों पर काबिज़ होने के बजाय ज्ञान, विचार और सत्ता की नई पीठों की रचना के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते, लालू जी!
राजनीति में परिवारवाद से दूर रहने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत दलित-पिछड़े नेतृत्व को है, लेकिन दुखद यह है कि ये ताकतें सबसे पहले अपने परिवार को ही अपनी विरासत सौंपती हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त ने सरकार से आग्रह किया है कि वह पेपर ट्रेल मशीनों की समयबद्ध खरीद के लिए तुरंत धन जारी करे ताकि लोकसभा चुनाव में इन मशीनों को उपयोग में लाया जा सके.
दंगा संबंधी मामलों की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए फर्ज़ी लेकिन भड़काऊ वीडियो के मामले में भाजपा विधायक संगीत सोम को क्लीन चिट दे दी है.
कहने के लिए इस्लाम शक्ति और विश्व-बंधुत्व का धर्म कहलाता है, हिंदू धर्म ब्रह्मज्ञान और सहिष्णुता का धर्म बतलाया जाता है, किंतु क्या इन दोनों धर्मों ने अपने इस दावे को कार्यरूप में परिणत करके दिखलाया?
‘सर कलम कर दूंगा. हाथ काट दूंगा. पैर तोड़ दूंगा. फांसी पर लटका दूंगा. फांसी चढ़ जाऊंगी. गाय मत खाओ. मंदिर बनकर रहेगा. मंदिर के लिए जान दे देंगे. मंदिर के लिए जान ले लेंगे. वंदे मातरम गाओ. भारत माता की जय बोलो वरना पाकिस्तान चले जाओ. किसान को गोरक्षकों ने पीटा तो अच्छा किया. सिर काट लाओ, एक करोड़ देंगे.’
उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत के बाद से सपा-बसपा गठबंधन की चर्चा लगातार चल रही है, लेकिन जानिए वो दस वजहें जो बताती हैं क्यों उत्तर प्रदेश बिहार नहीं बन सकता है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने अपील की कि क़ानून का पालन करते हुए गाय की रक्षा करने का काम किया जाए.
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि नागरिकों की याददाश्त अल्पकालिक होने की वजह से चुनावी घोषणा पत्र कागज के टुकड़े बनकर रह जाते हैं.
बीते ज़माने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान कि पद्मभूषण पुरस्कार पाने के लिए मैं उनके पीछे पड़ी थी, काफी दुखद था.
शहर की भीड़ हर रोज़ और बढ़ रही है. गांव को अपने भीतर लील रही है. इंसान का ही रहना यहां मुहाल है. गाय को बचाने का तो बस बवाल है.