क्या नौकरशाही देश के गरीबों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है?

वीडियो: देश के प्रशासन में नौकरशाही पर आई पूर्व आईएएस अधिकारी नरेश चंद्र सक्सेना से उनकी किताब 'व्हाट एल्स द आईएएस एंड व्हाय इट फेल्स टू डिलीवर' पर बात कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु.

आर्थिक असमानता लोगों को मजबूर कर रही है कि वे बीमार तो हों पर इलाज न करा पाएं

सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.

उदारीकरण के बाद बनीं आर्थिक नीतियों से ग़रीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती गई

जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.

भ्रष्टाचार और कालाधन रात भर में सुलझाने वाली समस्या नहीं है: बिबेक देबरॉय

प्रख्यात अर्थशास्त्री और नीति आयोग के सदस्य देबरॉय ने कहा कि भ्रष्टाचार से अपेक्षाकृत गरीबों को ज्यादा नुकसान होता है और ​भ्रष्टाचार पर शिकंजे का असर अमीरों पर पड़ता है.