बुद्धि-आधारित समाज बनाना तो दूर, सारी कोशिश बुद्धि व विवेक शून्य समाज बनाने की है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: देश में घृणा, परस्पर अविश्वास, भेदभाव, अन्याय, झूठ, अफ़वाह सभी में अद्भुत विस्तार हुआ है. राजनीति, मीडिया, धर्म, सामाजिक आचरण सभी मर्यादाहीन होने में कोई संकोच नहीं करते. राजनीति की सर्वग्रासिता, सार्वजनिक ओछापन-टुच्चापन लगभग अनिवार्य माने जाने लगे हैं.