मेडिकल कॉलेज की सीटों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा को लेकर डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के नागरिकों को इतना सशक्त किया जाए कि आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन हो.
लोकसभा में पेश रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण संबंधी संसदीय समिति ने बताया कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बीएसएनएल में एससी/एसटी कर्मचारियों की पदोन्नति रोकी गई है.
बराबरी न केवल अनुच्छेद 14 के तहत मिला मौलिक अधिकार है, बल्कि संविधान की प्रस्तावना में लिखित एक उद्देश्य तथा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा भी है. समता का सिद्धांत यह है कि समान व्यक्तियों के साथ समान बर्ताव तथा अलग के साथ अलग बर्ताव किया जाए.
इन श्रेणियों के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2020 को समाप्त होने वाली थी. सरकार आरक्षण की मियाद बढ़ाने के लिए इस सत्र में एक विधेयक लाएगी.
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सितंबर 2018 में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समृद्ध लोग यानी कि क्रीमी लेयर को कॉलेज में दाखिले तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका स्वीकार करते हुए यह फ़ैसला दिया है. मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसमें बदलाव करते हुए कहा था कि इस एक्ट में मामला दर्ज होने पर फौरन गिरफ़्तारी नहीं होगी और प्रारंभिक जांच के बाद ही कार्रवाई की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के 2018 के उस क़ानून को बरक़रार रखा जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति एवं वरिष्ठता क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने संबंधित मामले की सुनवाई कर रही है.
सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कोई ‘एक्स’ व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है. अब, क्या उसके परिवार के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना तर्कपूर्ण होगा.’
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एससी/एसटी वर्ग के लोग सदियों तक मुख्यधारा से बाहर रखे गए, जाति का दंश एवं ठप्पा अब भी उनके साथ जुड़ा हुआ है. क्रीमी लेयर सिर्फ़ ओबीसी के तहत आरक्षण लाभ प्राप्त करने से समृद्ध लोगों को बाहर रखने के लिए लाया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा क़ानून के हिसाब से यह व्यवस्था इस मामले में संवैधानिक पीठ का अंतिम फैसला आने तक लागू रह सकती है.