एक पत्रकारिता सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा कि निष्पक्ष आलोचना प्रत्येक व्यक्ति और पत्रकार का अधिकार है. मुझे सरकार की नीतियों और कृत्यों पर टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है. अगर मैं ऐसा करता हूं तो यह राजद्रोह नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने टीवी समाचार सामग्री पर नियामकीय नियंत्रण की कमी पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि नफ़रत फैलाने वाले भाषण एक ‘बड़ा ख़तरा’ हैं. भारत में ‘स्वतंत्र एवं संतुलित प्रेस’ की ज़रूरत है. अदालत ने कहा कि आजकल सब कुछ टीआरपी से संचालित होता है. चैनल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं.
दिल्ली में हुए धर्म संसद में कथित तौर पर नफ़रत भरे भाषण देने संबंधी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना 19 दिसंबर 2021 को हुई थी और एफ़आईआर पांच महीने बाद दर्ज की गई. इतना समय क्यों लगा? ऐसे मामलों में आरोपियों के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए और केवल ‘नाम’ के लिए एफ़आईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिरोध के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत सुरक्षा प्रदान की गई है और सरकार के क़ानून व्यवस्था की आलोचना करना कोई अपराध नहीं है.