संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' तथा 'समाजवाद' शब्दों को हटाए जाने की मांग लोकतंत्र और संविधान के लिए ख़तरे की सूचक है. शब्दों में बदलाव के बजाय हमारी मानसिकता में बदलाव की मांग होनी चाहिए.
कन्याकुमारी के तिरुवत्तर में हिंदू धर्म विद्या पीठम के दीक्षांत समारोह में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहना चाहिए, क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता की कोई आवश्यकता नहीं है. विपक्ष ने उनकी टिप्पणी को अस्वीकार्य बताया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अपनी नई किताब ‘द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग’ को लेकर दिए एक साक्षात्कार में कहा कि धर्मनिरपेक्षता महज एक शब्द है और यदि सरकार इस शब्द को हटा भी देती है, तब भी संविधान अपने मूल स्वरूप की वजह से धर्मनिरपेक्ष ही बना रहेगा.
क्या नरेंद्र मोदी यह कहना चाह रहे हैं कि मुस्लिमों को जिस भय की राजनीति का सामना करना पड़ रहा है, वे उसे ख़त्म करने की कोशिश करेंगे? अगर उन्हें गंभीरता के साथ इस ओर काम करना है तो इसकी शुरुआत संघ परिवार से नहीं होनी चाहिए.
जन गण मन की बात की 259वीं कड़ी में विनोद दुआ वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुख़ारी की हत्या और भारत में धर्मनिरपेक्षता पर चर्चा कर रहे हैं.