जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में वर्ष 2020 में भड़के दंगे के कथित षड्यंत्र के मामले में जनवरी 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. तब से वे जेल में हैं.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद को आठ दिसंबर 1989 को श्रीनगर के लाल डेड अस्पताल के पास से अगवा कर लिया गया था. 13 दिसंबर 1989 को भाजपा द्वारा समर्थित केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार द्वारा जेकेएलएफ के पांच आतंकियों को रिहा किए जाने के बाद अपहरणकर्ताओं ने उन्हें रिहा कर दिया था. प्रतिबंधित संगठन जेकेएलएफ के प्रमुख यासीन मलिक को हाल ही में आतंकवाद के वित्त पोषण से जुड़े एक मामले में उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई है.
साल 2020 के दिल्ली दंगा मामले में जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम ने अपने आवेदन में आरोप लगाया गया है कि सहायक जेल अधीक्षक ने हाल ही में तलाशी की आड़ में आठ-दस लोगों के साथ उसके सेल में प्रवेश किया, उससे मारपीट की और ‘आतंकवादी’ तथा ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहकर संबोधित किया.
सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों के समूह-कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने एक बयान जारी कर कहा है कि यूएपीए के तहत ‘ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों’ के अपराधीकरण को बनाए रखते हुए आईपीसी की धारा 124ए यानी राजद्रोह को हटाने से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी को पर्याप्त राजनीतिक लाभ मिलेगा.
क्या यासीन मलिक उन पर लगे आरोपों के लिए दोषी हैं? यह मानने का कोई कारण नहीं है कि वह नहीं है, लेकिन जो सरकार बरसों के संघर्ष का शांति से समाधान निकालने को लेकर गंभीर हैं, उनके पास ऐसे अपराधों से निपटने के और तरीके हैं.
‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ और ‘सबका साथ-सबका विकास’ सरीखे नारे देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने शासन में इस पर अमल करते नज़र नहीं आते हैं.
यासीन मलिक को दो अपराधों – आईपीसी की धारा 121 (भारत सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना) और यूएपीए की धारा 17 (यूएपीए) (आतंकवादी गतिविधियों के लिए राशि जुटाना) – के लिए दोषी ठहराते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई है. बीते 10 मई को मलिक ने 2017 में घाटी में कथित आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों से संबंधित एक मामले में अदालत के समक्ष सभी आरोपों के लिए दोष स्वीकार कर लिया था.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने राजद्रोह क़ानून को लेकर शीर्ष अदालत के हालिया आदेश को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस क़ानून में कुछ अपवाद थे जहां राजद्रोह के आरोप लागू नहीं किए जा सकते पर यूएपीए की धारा 13 के तहत कोई अपवाद नहीं हैं. यदि यह प्रावधान बना रहता है, तो यह बद से बदतर स्थिति में जाने जैसा होगा.
इस साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत ने साल 2019 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम के ख़िलाफ़ राजद्रोह का अभियोग तय किया था. इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून पर विचार होने तक इससे संबंधित सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
ऐसी संभावना है कि राजद्रोह का आसन्न अंत देश भर में पुलिस (और उनके आकाओं) को आलोचकों को डराने और पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व विपक्षी नेताओं को चुप कराने के तरीके के रूप में अन्य क़ानूनों के उपयोग को बढ़ा देगा.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, छह सालों में राजद्रोह क़ानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज़्यादा असम में 54 मामले दर्ज किए गए, लेकिन एक भी दोष सिद्ध नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने क़ानून की समीक्षा होने तक राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाते हुए निर्देश दिया है कि इसके तहत कोई नई एफ़आईआर दर्ज न की जाए.
सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफ़आईआर को दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत जबरदस्ती क़दम उठाने से तब तक परहेज़ करेंगी, जब तक कि यह पुनर्विचार के अधीन है. यह उचित होगा कि इसकी समीक्षा होने तक क़ानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए.
राजद्रोह संबंधी दंडात्मक क़ानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पूछा था कि क्या इसे 1962 के फैसले के आलोक में पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा जाना चाहिए. इस क़ानून के भारी दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र से पूछा था कि वह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा इस्तेमाल किए गए इस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है.
आरोप है कि अक्टूबर 2021 में टी-20 विश्व कप क्रिकेट मैच में पाकिस्तान से भारत के हारने पर आगरा में पढ़ रहे तीन कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की थी. उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह, साइबर आतंकवाद और सामाजिक द्वेष फैलाने की धाराओं में मुक़दमा दर्ज हुआ था. तब से वे जेल में बंद थे. 30 मार्च को उन्हें ज़मानत मिल गई थी, लेकिन कोई ज़मानतदाता न मिलने के चलते वे रिहा नहीं हो पा रहे थे.
आरोप है कि पिछले साल अक्टूबर में टी-20 विश्व कप क्रिकेट मैच में पाकिस्तान से भारत की हार पर आगरा में पढ़ाई कर रहे तीनों कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की थी. उनके ख़िलाफ़ राष्ट्रद्रोह, साइबर आतंकवाद और सामाजिक द्वेष फैलाने की धाराओं में मुक़दमा दर्ज हुआ था. तब से वे जेल में बंद हैं. 30 मार्च को उन्हें ज़मानत मिल गई थी.