सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को उस पर लगे आरोपों के ख़िलाफ़ अधिकार देता है, कहा कि सभी आरोपियों को चुप रहने का अधिकार है और जांचकर्ता उन्हें बोलने या अपराध स्वीकारने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. जांच में ‘सहयोग’ का मतलब ‘स्वीकारोक्ति’ नहीं हो सकता.
वीडियो: आपको किसी ऐसे अपराध के लिए सज़ा नहीं सुनाई जा सकती, जो अपराध था ही नहीं जब आपने उसे अंजाम दिया. इसी प्रकार से एक ही अपराध के लिए आपको दो बार सज़ा नहीं सुनाई जा सकती. आप पर ये दबाव भी नहीं बनाया जा सकता है कि आप अपने ही ख़िलाफ़ गवाही दें. आइए समझते है, भारत के संविधान का अनुच्छेद-20 को, जो इन तीनों बातों की संविधानिक सुरक्षा प्रदान करता है.