शेख़ हसीना सरकार गिरने के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच हुई पहली विदेश सचिव स्तर की वार्ता में भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताई थी. जवाब में बांग्लादेश ने इसे अपना आंतरिक मामला बताते हुए टिप्पणी से परहेज़ करने की सलाह दी है.
बांग्लादेश के चटगांव में हिंदू नेता और पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की हिरासत के विरोध में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प के दौरान एक वकील की कथित तौर पर हत्या कर दी गई. देश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने हत्या की निंदा करते हुए जांच के आदेश दिए हैं.
ट्रंप द्वारा बांग्लादेश को निशाना बनाना हिंदू-मुस्लिम के बीच की मौजूदा खाई को गहरा कर सकता है और दक्षिण एशियाई मूल के अमेरिकियों के बीच एक होने की भावना को मिटा सकता है.
बांग्लादेशी हिंदू समूहों का कहना है कि अगस्त की शुरुआत में शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद से अब तक हिंदुओं पर हज़ारों हमले हो चुके हैं. जबकि, अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस का कहना है कि आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए हैं.
भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का प्रभाव बढ़ने के साथ ही उद्योगपति गौतम अडानी के व्यापार का विस्तार पड़ोसी देशों- बांग्लादेश और श्रीलंका में देखने को मिला. हालांकि अब दोनों देशों में सत्ता परिवर्तन के बाद अडानी समूह के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
तख्तापलट के बाद मुहम्मद यूनुस ने कहा था कि बांग्लादेश को दूसरी आज़ादी मिली है, लेकिन इसके असल लाभार्थी तमाम कट्टरपंथी संगठन बन रहे हैं.
बांग्लादेश से भागकर भारत में रह रहीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ करीब 100 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से ज़्यादातर प्रदर्शनकारियों की हत्याओं से जुड़े हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि बांग्लादेश में उथल-पुथल के कारण कुछ परियोजनाओं पर काम रुका हुआ है. एक बार जब हालात स्थिर हो जाते हैं तो हम पड़ोसी देश से बात करेंगे.
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की अल्पसंख्यक राजनीति विभाजित हो गयी है. कुछ हिंदू कहते हैं कि तख्तापलट के दौरान और उसके बाद अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये हैं, और कुछ दावा करते हैं कि ये आरोप बेबुनियाद हैं और माहौल को भड़काने के लिए हैं.
राणा दासगुप्ता बांग्लादेश के प्रमुख अल्पसंख्यक नेता हैं. द वायर हिंदी से बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद 52 ज़िलों में अल्पसंख्यकों पर हमलों और उत्पीड़न की कम से कम 205 घटनाएं हुई हैं.
किसी भी देश में बहुसंख्यकवाद हो, उसका प्रभाव दूसरे देश की प्रगति को बाधित करेगा. दोनों देशों की छवियां भी इससे प्रभावित होंगी. यदि भारत और बांग्लादेश में से एक में भी धर्मनिरपेक्षता ख़त्म होती है तो ऊपर से चाहे जितने भी समझौते कर लिए जाएं, कभी अमन क़ायम नहीं हो सकता.
बांग्लादेश के मूल्यों और संस्कृति के लिए घरेलू सांप्रदायिकता की अपेक्षा भारत में होने वाली मुसलमान विरोधी बयानबाज़ी और राजनीति ज़्यादा घातक है. भारत में मुसलमानों पर किए जा रहे व्यक्तिगत या संगठित अत्याचार हों, या अयोध्या और 'लव जिहाद' से संबंधित अदालती फैसले, इन सबका घातक प्रभाव बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता पर होता है.
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के बारे में विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके सभी अंग विकसित हो रहे हैं, हालांकि बढ़ती हुई असमानता आज भी चिंता का विषय है.
बांग्लादेश में भारत के विरोध के तीन प्रमुख कारण नज़र आते हैं- सांप्रदायिक ताक़तें, दक्षिणपंथी राजनीतिक दल और घरेलू कारणों से भारत को लेकर खड़ा किया गया भय.
भारत के लिए आवश्यक है कि वह बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों से अच्छे संबंध कायम करे. यह रेखांकित करना चाहिए कि विपक्ष को 40 फीसदी मतदाताओं का समर्थन है