एक आराध्य का चुनाव भीड़ को जन्म देता है. एक नेता में आस्था जिससे कोई सवाल नहीं किया जा सकता, जिसकी सिर्फ़ जय-जयकार ही की जा सकती है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की बारहवीं क़िस्त.
जनतंत्र में आशंका बनी रहती है कि जनता प्रक्रियाओं को लेकर निश्चिंत हो जाए और यह मानकर उन पर भरोसा कर बैठे कि वे अपना काम करते रहेंगे और जनतंत्र सुरक्षित रहेगा. मगर अक्सर यह नहीं होता. कविता में जनतंत्र स्तंभ की ग्यारहवीं क़िस्त.
जनतंत्र मात्र वोट से नहीं चलता. वह संस्थानों, शक्तियों के विभाजन और उनकी निगरानी और उन पर नियंत्रण से ही चल सकता है. लेकिन इतिहास हमें बतलाता है कि कई बार स्वायत्त संस्थान अपनी स्वायत्तता सरकार के हवाले कर देते हैं.
कविता में जनतंत्र स्तंभ की दसवीं क़िस्त.
वीडियो: आंखों देखी, दम लगा के हईशा और लाल सिंह चड्ढा जैसी फ़िल्मों के साथ-साथ पंचायत, मिर्ज़ापुर और ब्रीद: इनटू द शैडोज जैसी वेब-सीरीज़ में अभिनय कर चुके अभिनेता श्रीकांत वर्मा से उनके जीवन, रंगमंच, सिनेमा और ओटीटी पर उनके अनुभव और यात्रा के बारे में बातचीत.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.
चुनावी बातें: 1980 के चुनाव में वामपंथियों के नारे- 'चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ, न रहेगा फूल' के जवाब में कांग्रेस ने ‘न जात पर, न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’ का नारा दिया था.
श्रीकांत वर्मा के साहित्य में जीवन-मरण का स्मरण किसी प्रकार के रहस्यवाद से परे है. बात सीधी-सपाट है. आदमी अपने ‘रक्तचाप’ से मरता है, अपने ‘पाप’ से नहीं.