पंजाब के फिरोज़पुर में पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला प्रदर्शनकारियों द्वारा मार्ग अवरुद्ध करने के कारण फ्लाईओवर पर फंस गया था, जिसके बाद वह एक रैली सहित किसी भी कार्यक्रम में शामिल हुए बिना लौट गए थे. इस सुरक्षा चूक की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति का गठन किया था.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनआईए महानिरीक्षक, चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और पंजाब के अतिरिक्त डीजीपी (सुरक्षा) को समिति का सदस्य नियुक्त करते हुए कहा कि सवालों को एकतरफा जांच पर नहीं छोड़ा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे पर हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगा.
पंजाब में हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच अवश्य होनी चाहिए, लेकिन यह प्रधानमंत्री के सुरक्षा प्रोटोकॉल में उल्लंघन की पहली घटना नहीं है. पूर्व एसपीजी अधिकारियों का कहना है कि आखिरी फैसला नरेंद्र मोदी ही लेते हैं और अक्सर सुरक्षा के तय कार्यक्रमों को अंगूठा दिखा देते हैं.
प्रधानमंत्री की ख़ासियत है कि जब-जब वे अप्रिय स्थिति में पड़ते हैं किसी न किसी तरह उनकी जान को ख़तरा पैदा हो जाता है. जब से वे मुख्यमंत्री हुए तब से अब तक कुछ समय के बाद उनकी हत्या की साज़िश की कहानी कही जाने लगती है. लोग गिरफ़्तार किए जाते हैं, पर कुछ साबित नहीं होता. फिर एक रोज़ नए ख़तरे की कहानी सामने आ जाती है.
पंजाब के फ़िरोज़पुर में पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में कथित चूक को लेकर भाजपा का आरोप है कि यह उनकी हत्या की साजिश थी. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी वीडियो दिखाता है कि किसान वास्तव में प्रधानमंत्री के काफिले के रुकने की जगह से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर थे.
सुरक्षा में चूक को लेकर ख़ुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी जिस तरह उसी क्षण से इस घटना को सनसनीखेज़ बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने में लग गए हैं, उससे ज़ाहिर है कि वे घटना की गंभीरता को लेकर कम और उससे मुमकिन चुनावी फायदे के बारे में ज़्यादा गंभीर हैं.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है. इस सवाल को रैली में कितने लोग आए, कितने नहीं आए इसे लेकर ज़्यादा बहस की ज़रूरत नहीं. सुरक्षा इंतज़ामों में पंजाब सरकार की भूमिका हो सकती है लेकिन यह एसपीजी के अधीन होती है. प्रधानमंत्री कहां जाएंगे और उनके बगल में कौन बैठेगा यह सब एसपीजी तय करती है. इसलिए सबसे पहले कार्रवाई केंद्र सरकार की तरफ से होनी चाहिए.
वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पूर्व प्रधानमंत्रियों के क़रीबी परिजनों को एसपीजी सुरक्षा देने के लिए क़ानून में संशोधन किया गया. गांधी परिवार से एसपीजी सुरक्षा हटाने के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इकलौते शख़्स होंगे, जिनके पास यह सुरक्षा होगी.
अजीत डोभाल को पहली बार मई 2014 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था. तब उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था.
पीएम नरेंद्र मोदी के हेलीकॉप्टर की जांच करने वाले कर्नाटक काडर के आईएएस अधिकारी मोहम्मद मोहसिन का निलंबन चुनाव आयोग ने वापस ले लिया है लेकिन कर्नाटक सरकार से उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश की है और चुनावी ड्यूटी पर भी रोक लगा दी है.
केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर की जांच करने वाले अधिकारी मोहम्मद मोहसिन का निलंबन वापस लेने का आदेश दिया. चुनाव आयोग ने निलंबन वापस तो ले लिया है लेकिन अधिकारी की चुनावी ड्यूटी पर रोक लगाते हुए कर्नाटक सरकार से उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहा है.
कर्नाटक कैडर के 1996 बैच के आईएएस अधिकारी मोहम्मद मोहसिन ने ओडिशा के सम्बलपुर में प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर की जांच की थी, जो निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत नहीं था.