भारत को ख़ुद को ऊर्जा बाज़ार में लंबे व्यवधान और मुद्रा की कमज़ोरी का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि इनका आर्थिक विकास, आजीविका और रोज़गार पर गंभीर असर होगा.
रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध अगर दो तिमाही तक भी चलते हैं, तो मुद्रास्फीतिकारी ताक़तें नियंत्रण से बाहर चली जाएंगी. अगर वैश्विक निवेशक अमेरिकी ट्रेज़री बॉन्ड की सुरक्षा की ओर भागेंगे, तो रुपये की विनिमय दर में भी तेज़ गिरावट आएगी.
बैंक अधिकारी और कर्मचारी केवल अपनी सेवा शर्तों में सुधार और अधिक वेतन के लिए ही प्रबंधन के सामने आते है, लेकिन जब ग़लत नीतियों से बैंक को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा होता है तब ये ख़ामोश रहते हैं.
नोस्ट्रो एकाउंट की मॉनिटरिंग और स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम की ख़ामियां जगजाहिर थीं. इनके दुरुपयोग के लिए बस नीरव मोदी जैसे शातिर दिमाग़ की ही ज़रूरत थी.