मंज़ूर एहतेशाम की ‘तमाशा’ अभाव और भव्यताहीन साधारण जीवन का चिर-परिचित सच है

कला हो या जीवन दोनों ही बस अंततः सफल हो जाने वाले नायकों के गुणगान गाते हैं. मंज़ूर एहतेशाम की कहानी ‘तमाशा’ इसके विपरीत संघर्षों में बीत जाने वाले जीवन की कहानी है, बिना किसी परिणाम की प्राप्ति के.