केंद्र सरकार पिछले चार सालों से 'जल जीवन मिशन' के तहत पूरे देश में 'हर घर नल से जल' योजना को यूं प्रचारित कर रही है कि आज़ादी के बाद पहली बार सरकार ने आम आदमी के घर तक पेयजल पहुंचाने का प्रबंध किया है. हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त सरकार के दावों के विपरीत है.
सरकार ने राज्यसभा में बताया कि 2.17 करोड़ ग्रामीण आदिवासी परिवारों में से 1.2 करोड़ के पास नल का पानी कनेक्शन है. झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के आधे से अधिक ग्रामीण आदिवासी परिवारों को अभी तक नल का पानी कनेक्शन नहीं मिला है.
इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने अपनी जांच में पाया है कि बिहार के कम से कम 20 ज़िलों में ऐसे ठेके दिए गए हैं, जिसका फ़ायदा नेताओं के सहयोगियों को हो रहा है. इसमें भाजपा और जदयू से लेकर राजद तक के वरिष्ठ नेताओं के रिश्तेदार शामिल हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बिहार में भाजपा के विधायक दल के नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के परिवार के सदस्यों और क़रीबियों को 'हर घर नल का जल' योजना के तहत 53 करोड़ रुपये से अधिक का ठेका दिया गया, जिसमें उनकी बहू पूजा कुमारी और उनके साले प्रदीप कुमार भगत भी शामिल हैं.
नल जल योजना में स्रोत से लेकर गांव की हद तक पानी पहुंचाने का काम कंपनियों को सौंपा गया है. कोई गारंटी नहीं कि कंपनी आपूर्ति के मूल जल-स्रोत पर अपना हक़ नहीं जताएगी. एकाधिकार हुआ तो सिंचाई आदि के लिए पानी से इनकार किया जा सकता है, वसूली भी हो सकती है. मोदी सरकार की अन्य कई योजनाओं की तरह नल-जल का एजेंडा काॅरपोरेट नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है?
गुजरात सरकार ने इस साल कुल 11.15 लाख परिवारों में नल लगाने का प्रस्ताव जल शक्ति मंत्रालय के पास भेजा था, जिसमें सिर्फ़ 62,043 एससी/एसटी परिवार शामिल हैं. इसे लेकर मंत्रालय ने नाराज़गी जताई है और प्रस्ताव में बदलाव करने के लिए कहा है.