चीन के साथ कारोबारी रिश्तों को सरकार और अर्थव्यवस्था की कामयाबी के रूप में पेश किया जाता है लेकिन जब कभी दोनों देशों में विवाद होता है तब लड़ियों-फुलझड़ियों का विरोध शुरू हो जाता है.
डॉन अख़बार ने अपने संपादकीय में कहा है कि पाकिस्तान सरकार को मानवीय आधार पर जाधव की मां को वीजा प्रदान करना चाहिए.
इरोम ने कहा, ‘मैंने 16 सालों तक मणिपुर में आफ्सपा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी पर लोगों ने मुझे नकार दिया.’
जन गण मन की बात की 83वीं कड़ी में विनोद दुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचे हुए कार्यकाल और बेराज़गारी की समस्या पर चर्चा कर रहे हैं.
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार से गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाट पर धार्मिक क्रियाकलापों के लिए दिशा-निर्देश बनाने को भी कहा है.
नीतीश को अध्यक्ष बनाने का सुझाव देते हुए गुहा ने बताया कि वे ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कांग्रेस बगैर नेता वाली पार्टी है और नीतीश बगैर पार्टी वाले नेता हैं.
द वायर ने भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव पर पूर्व विदेश सचिव और चीन में भारतीय राजदूत रहीं निरूपमा राव से बातचीत की.
फिल्मकार सुमन घोष ने सेंसर बोर्ड द्वारा बताए गए शब्दों को हटाने से साफ इनकार कर दिया है.
जन गण मन की बात की 80वीं कड़ी में विनोद दुआ भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा फर्ज़ी ख़बरों को फैलाने और एयर इंडिया की इकोनॉमी श्रेणी में मासांहार बंद होने पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की पांचवीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, द हूट की संपादक सेवंती निनान और एनडीटीवी की वरिष्ठ संपादक निधि कुलपति के साथ बंगाल के बसीरहाट और बादुरिया की सांप्रदायिक हिंसा के मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
जन्मदिन विशेष: गुरुदत्त फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा सूरज थे, जो बहुत कम वक़्त के लिए अपनी रौशनी लुटाकर बुझ गया पर सिल्वर स्क्रीन को कुछ यूं छू कर गया कि सब सुनहरा हो गया.
जन गण मन की बात की 79वीं कड़ी में विनोद दुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा और विपक्ष के विफल होने पर चर्चा कर रहे हैं.
धोनी पर कई बार अपने चहेते खिलाड़ियों को टीम में लेने का आरोप लगा. लेकिन कप्तान विराट कोहली सहित टीम के कई मौजूदा खिलाड़ी मानते हैं कि उनकी सफलता में धोनी द्वारा उन पर दिखाए गए भरोसे का बड़ा हाथ है.
जन गण मन की बात की 78वीं कड़ी में विनोद दुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इज़रायल दौरे और राज्यपालों की भूमिका पर चर्चा कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को ग़लत ठहराया जहां उसने फर्ज़ी सर्टिफिकेट के आधार पर व्यक्ति को नौकरी की लंबी अवधि के चलते सेवा में बने रहने की अनुमति की बात कही थी.