बंधुत्व के बिना स्वतंत्रता और समानता हासिल करना असंभव है

जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.

उत्तर प्रदेश: जान से मारने की धमकी के बाद दलित परिवार ने कथित तौर पर गांव का घर छोड़ा

उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले का मामला. आरोप है कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई थी. कथित रूप से सरकारी हैंडपंप छू लेने के आरोप में बीते 25 दिसंबर को दबंगों ने दलित परिवार के कुछ सदस्यों की पिटाई की थी. पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने वास्तविक घटना छिपाकर मामूली धाराओं में केस दर्ज किया है.

‘टू मच डेमोक्रेसी’ में जनता कहां है

जैसे आर्थिक नीतियों को देशवासियों के बजाय कॉरपोरेट के लिए उदार बनाने की प्रक्रिया को उदारवाद का नाम दिया गया और देश के संसाधनों की लूट की खुली छूट देने को विकास के लिए सुधार कहा जाता है, क्या वैसे ही अब सारी अलोकतांत्रिकताओं को लोकतंत्र कहा जाने लगेगा?

कुठांव: मुस्लिम समाज में जातिवाद को उघाड़ता उपन्यास

अब्दुल बिस्मिल्लाह ने मुस्लिम समाज में मौजूद जातिवाद को कुठांव यानी मर्मस्थल की मानिंद माना है. उनके अनुसार यह एक ऐसा नाज़ुक विषय है अमूमन जिसका अस्तित्व ही अवास्तविक माना जाता है और जिसके बारे में बात करना पूरे मुस्लिम समाज के लिए एक पीड़ादायक विषय है.

हम पराधीनता से स्वाधीनता तक पहुंच गए, पर स्वतंत्रता तक पहुंचना अभी बाकी है

पेरियार ने कहा था, 'हमें यह मानना होगा कि स्वराज तभी संभव है, जब पर्याप्त आत्मसम्मान हो, अन्यथा यह अपने आप में संदिग्ध मसला है.' भारतीय संविधान की उद्देशिका बताती है कि भारत अब एक संप्रभु और स्वाधीन राष्ट्र है, लेकिन इसे अभी 'स्वतंत्र' बनाया जाना बचा हुआ है.

आंबेडकर को जितना अस्वीकार वर्तमान राजनीति ने किया है, उतना किसी और ने नहीं किया

जब कोई फल पक जाता है, तब उसे तोड़ने के लिए सभी लपक पड़ते हैं. उसी तरह आज राजनीति में आंबेडकर चहेते हो गए हैं, लेकिन आंबेडकर दिखने में चाहे जितने आकर्षक हों, अपनाने में उतने ही कठिन हैं. वर्तमान राजनीतिक दल इस बात को जानते हैं इसीलिए वे 14 अप्रैल और 6 दिसंबर पर उनका नाम तो लेते हैं लेकिन उनकी वैचारिक तेजस्विता से डरते हैं.

दलितों के घर खाना खाने से छुआछूत ख़त्म नहीं होगी: पासवान

केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री ने कहा कि नेताओं को दलितों के घर भोजन करने के बजाय उनकी मूल समस्याओं को हल करने की कोशिश करना चाहिए. अशिक्षा, अत्याचार निवारण और दलितों के विकास पर काम होना चाहिए.

आंबेडकर के रेडिकल पक्ष से कौन डरता है?

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के रेडिकल पक्ष को नज़रअंदाज़ करने के पीछे की राजनीति बहुत पुरानी है. शासक जमातें उत्पीड़ित तबकों से आने वाले नेताओं को सीमित करके प्रस्तुत करती हैं.

जब चुनाव हार गए थे बाबा साहब भीमराव आंबेडकर

जन्मदिन विशेष: भारत के जिस संविधान का भीमराव आंबेडकर को निर्माता कहा जाता है उसके लागू होने के बाद 1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह हार गए थे.

आंबेडकर: संविधान अच्छे हाथों में रहा तो अच्छा, बुरे हाथों में गया तो ख़राब साबित होगा

जन्मदिन विशेष: आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं, उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो-चार हैं, उनके अंदेशे भीमराव आंबेडकर ने तभी भांप लिए थे.

क्या ‘जूठन’ पाठ्यक्रमों से बाहर कर दी जाएगी?

हिमाचल विश्वविद्यालय में ओम प्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’ बीते 3 सालों से पढ़ाई जा रही थी, तब भावनाएं अचानक कहां से आहत हो गईं? क्या इसका ताल्लुक़ राज्य में हुए हालिया सत्ता परिवर्तन से है?

चौरासी दलित सांसद होने पर भी दलितों की सुनवाई नहीं होती: मार्टिन मैकवान

साल 2047 तक छुआछूत मिटाने को लेकर शुरू हुए अभियान पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और गुजरात के नवसर्जन ट्रस्ट के संस्थापक मार्टिन मैकवान से अजय आशीर्वाद की बातचीत.

झारखंड सरकार गांधी की छवि और जनता का पैसा ईसाईयों के ख़िलाफ़ नफरत फैलाने में इस्तेमाल कर रही है

11 अगस्त को झारखंड के अधिकतर हिंदी अख़बारों में छपे एक सरकारी विज्ञापन में गांधी के नाम से धर्मांतरण के संबंध में वो बातें लिखी गईं, जो उन्होंने कभी कही ही नहीं थीं.

आंबेडकरवाद का भक्तिकाल

जिन-जिन चीज़ों के बाबा साहब सख़्त ख़िलाफ़ थे, वो सारे पाखंड किए जा रहे हैं. बाबा साहब को अवतार कहा जा रहा है. यहां तक कि उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक बताया जा रहा है.