2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसके परिसर से एक मस्जिद हटाने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी पट्टे की ज़मीन पर बनी थी और साल 2002 में इसके अनुदान को रद्द कर दिया गया था.