वीडियो: उत्तर प्रदेश के चुनाव नज़दीक आते ही राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं. जहां एक तरफ़ भाजपा जनता को बता रही है कि अगर अखिलेश यादव वापस आए तो गुंडाराज वापस आ जाएगा तो वहीं अखिलेश यादव ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के ओपी राजभर से हाथ मिलाकर एक नया पासा फेंका है. उत्तर प्रदेश के चुनावी हालात के पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का नज़रिया.
2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते समय विधान परिषद एमएलसी के सदस्य रहे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने इस निर्णय के पीछे का कोई कारण नहीं बताया है. हालांकि उन्होंने ये ज़रूर कहा कि उनके चुनाव लड़ने पर अंतिम फैसला पार्टी करेगी.
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के नेताओं को जगह देकर उनकी शुभचिंतक होने का डंका पीट रही है. हालांकि जानकारों का सवाल है कि यदि ऐसा ही है तो प्रदेश के यादवों, जाटवों और राजभरों पर उसकी यह कृपा क्यों नहीं बरसी?
उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल का विस्तार ऐसे समय में किया गया है, जब विधानसभा चुनाव में बमुश्किल पांच महीने रह गए हैं. बीते जून महीने में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद के अलावा पलटू राम, धर्मवीर सिंह, छत्रपाल सिंह गंगवार, संगीता बलवंत, संजीव कुमार गौड़ और दिनेश खटिक ने शपथ ली. प्रसाद को कैबिनेट मंत्री, जबकि अन्य को राज्य मंत्री का पद दिया गया है.
आम आदमी पार्टी ने बीते 29 अगस्त को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में तिरंगा यात्रा निकाली थी, जिसमें दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह समेत बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया था. कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के आरोप में पार्टी के 17 नेताओं सहित 500 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ने मामला दर्ज किया है.